
'लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा सर्वोपरि, इसके लिए...', बोले निर्दलीय सांसद मोहम्मद हनीफा जान
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लद्दाख को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद 2019 में जम्मू और कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. पिछले कुछ वर्षों में संविधान की छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे के तहत सुरक्षा उपायों की मांग के लिए यहां कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
लद्दाख की नवनिर्वाचित सांसद मोहम्मद हनीफा जान ने छठी अनुसूची और लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा की मांग की है. उन्होंने कहा कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए NDA के नेताओं के साथ-साथ INDIA ब्लॉक से भी संपर्क करेंगे. हनीफा जान नेशनल कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा देने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़कर जीते हैं.
पीटीआई के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वह अभी किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे. हनीफा जान ने बताया, "इस बार लद्दाख में चुनाव अलग था. अब तक चुनाव धार्मिक या क्षेत्रीय आधार पर होते थे. इस बार लोगों ने केवल मुद्दों पर वोट दिया."
बता दें कि लद्दाख को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद 2019 में जम्मू और कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. पिछले कुछ वर्षों में संविधान की छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे के तहत सुरक्षा उपायों की मांग के लिए यहां कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं. इन दो मांगों के अलावा, चार सूत्री एजेंडे में, जिसके तहत लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस को केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ बातचीत की मेज पर लाया गया, एक अलग लोक सेवा आयोग और दो अलग लोकसभा सीटों की मांग भी शामिल है - एक कारगिल और एक लेह के लिए.
चुनाव से ठीक पहले, गृह मंत्रालय ने उनकी प्रमुख मांगों को ठुकरा दिया था. इसके कारण लेह में जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ. चुनाव से ठीक पहले आंदोलन स्थगित कर दिया गया. यहां तक कि भाजपा ने मौजूदा सांसद जामयांग त्सेरिंग नामग्याल की जगह लेह स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद के अध्यक्ष ताशी ग्यालसन को उतारा, लेकिन बीजेपी को कोई फायदा नहीं हुआ और तीसरे स्थान पर ही रही. कांग्रेस उम्मीदवार त्सेरिंग नामग्याल, जो LAHDC में विपक्ष के नेता भी हैं, दूसरे स्थान पर रहे.
'लद्दाख के 80 प्रतिशत लोग यथास्थिति से नाखुश'
हनीफा जान ने इंटरव्यू के दौरान कहा, "पिछले पांच सालों में लोग यूनियन टैरेट्री सेटअप के बारे में शिकायत करते रहे हैं, वे अपने भविष्य के रोजगार के बारे में चिंतित हैं. कई युवाओं के सपने चकनाचूर हो गए हैं. जो लोग पढ़ाई कर रहे हैं, वे भी अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. यह लद्दाख में एक आम मुद्दा है. हम पिछले पांच सालों से इन मुद्दों पर लड़ रहे हैं. कांग्रेस ने भी चुनावों में यही मुद्दे उठाए थे. अगर वोट शेयर को एक साथ जोड़ दें, तो लद्दाख के 80 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे यथास्थिति से खुश नहीं हैं और वे इन मुद्दों को हल करना चाहते हैं. सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए कि लोगों का जनादेश किस बारे में है."

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