राहुल गांधी का OBC दांव, बीजेपी के बहाने लालू-नीतीश-अखिलेश पर निशाने
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ओबीसी वोट कभी कांग्रेस के नहीं रहे हैं. पर जिस तरह राहुल गांधी लगातार ओबीसी वोट पर फोकस किए हुए हैं उससे यही लगता है कि इस बार कुछ अलग देखने को मिलेगा. अब देखना यह है कि कांग्रेस की इस नई राजनीति का असर बीजेपी पर पड़ेगा या इंडिया गठबंधन के साथियों पर?
ब्राह्मणों और दलित-मुसलमानों की पार्टी कही जाने वाली कांग्रेस ओबीसी पार्टी की पहचान बनाने के लिए मचल रही है.राहुल गांधी कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ रहे हैं जिसमें उन्हें ओबीसी का हितैषी बनने की वजह मिलती हो.महिला आरक्षण पर लोकसभा में बोलते हुए उन्होंने ओबीसी कैटेगरी के लिए अलग से सीट देने की डिमांड की ही, जातिगत जनगणना की डिमांड भी वे लगातार कर रहे हैं.
सवाल यह है कि क्या ओबीसी कॉडर वाली पार्टियों को छोड़कर पिछड़ी जाति के वोट कांग्रेस में शिफ्ट होंगे.सवाल यह भी है क्या ओबीसी कल्याण के नाम पर बनी पार्टियों के मुखिया यह बर्दाश्त कर सकेंगे कि उनकी जगह कांग्रेस या राहुल गांधी इन लोगों को नेता बन जाएं. अगर इंडिया गठबंधन के तहत पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो भी क्या तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव और मायावती जैसे नेताओं को ये बर्दाश्त होगा कि उनका कोर वोटर किसी और के झंडे के नीचे चला गया.
मंडल के बाद की राजनीति में कांग्रेस हुई कमजोर
आजादी के बाद की राजनीति में कभी कांग्रेस पिछड़े वर्ग की पार्टी नहीं रही. मंडल कमीशन की रिपोर्ट के लागू होने के पहले तक दरअसल देश में दो ही वर्ग था सामान्य और अनुसूचित . देश में जब गैरकांग्रेसी सरकार में मोरार जी देसाई पीएम बने तो उन्होंने 1979 में समाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग या मंडल आयोग का गठन किया . बीपी मंडल की अध्यक्षता वाले आयोग ने 1980 में ही अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी. 1980 में इंदिरा गांधी सरकार और 1984 से 1989 तक राजीव गांधी सरकार ने इस आयोग की रिपोर्ट की सुधि नहीं ली. 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में बनी गैर कांग्रेसी सरकार ने इस रिपोर्ट को लागू किया और पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की.
मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, लालू यादव , नीतीश कुमार , शरद यादव जैसे पिछड़ी जाति के नेताओं का वर्चस्व बढ़ता गया. इस दौर में बीजेपी ने तो बनियों की पार्टी से पिछड़ों की पार्टी बनने में देर नहीं कि पर कांग्रेस ब्राह्मणों की पार्टी बनी रही. उसका हश्र हुआ कि पार्टी उत्तर प्रदेश और बिहार से साफ हो गई.
यूपीए सरकार बनने तक कांग्रेस को पिछड़े वोटों का अंदाजा लग चुका था. नींद से जागी कांग्रेस नीत मनमोहन सिंह सरकार ने आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसी उच्च शिक्षण संस्थाओं में ओबीसी को पहली बार शैक्षणिक आरक्षण दिया. लेकिन, कांग्रेस इसे कभी भुना नहीं सकी.हो सकता है कि राहुल गांधी उस गलती को सुधारने के लिए ऐसा कर रहे हों. पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यू जैसी पार्टियों के रहते कांग्रेस कैसे पिछड़ों का नेतृत्व छीन सकेगी?
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