
रामपुर की राजनीति में कैसे 'खां' का खेल हुआ खत्म, क्या ये आजम युग का अंत है?
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आजम खान पिछले 45 सालों से रामपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते आ रहे थे. 10 बार आजम खुद विधायक रहे और एक बार उनकी पत्नी तंजीन फातिमा उपचुनाव में जीती थीं. सजायाफ्ता होने के बाद आजम ने यहां से अपने सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर आसिम रजा को पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ाया लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
रामपुर का नवाब परिवार मुश्किल से मुश्किल हालात में खुद को बचाए रखने में माहिर था, लेकिन आजम तो आजम ठहरे. नवाब खानदान की सियासत के लिए आजम ग्रहण बन गए और जिले में नवाबी सियासत को खत्म कर अपना दबदबा कायम कर ही दम लिया. वक्त बदला तो रामपुर की सियासत भी बदली. योगी सरकार ने पहले उन्हें और उनके परिवार को कानूनी शिंकजे में कसा और फिर बीजेपी ने आजम खां का सियासी खेल पूरी तरह से खत्म कर दिया. क्योंकि रामपुर लोकसभा सीट के बाद विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सूबे में यह आजम के सियासी युग का अंत है?
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही आजम खान की मुश्किलें ऐसी बढ़ीं कि उन्हें जेल और अदालतों के चक्कर ही नहीं लगाने पड़े बल्कि अपनी विधानसभा सदस्यता भी गंवानी पड़ गई. हेट स्पीच मामले में आजम को कोर्ट ने 3 साल की सजा सुनाई, इसके बाद उनकी विधायकी रद्द कर दी गई. इसके बाद रामपुर विधानसभा सीट पर चुनाव कराया गया जिसमें वह अपने उम्मीदवार को जीत नहीं दिला सके. रामपुर में बीजेपी के आकाश सक्सेना ने 34 हजार मतों से जीत दर्ज की है.
रामपुर सीट से पहली बार हिंदू विधायक रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में 131116 वोट पड़े. इसमें बीजेपी प्रत्याशी आकाश सक्सेना को 81371 वोट मिले हैं जबकि सपा उम्मीदवार आसिम रजा को 47271 वोट मिले हैं. इस तरह से आकाश सक्सेना 34136 वोटों ने जीत हासिल करने में कामयाब रहे. इसी के साथ मुस्लिम बहुल रामपुर विधानसभा सीट पर पहली बार बीजेपी ने कमल खिलाया और पहली बार हिंदू समुदाय की विधायक भी बना दिया. आजम खान और सपा की मुस्लिम सियासत के लिए रामपुर की हार किसी बड़े झटके से कम नहीं है.
आजम खान की सियासत को बड़ा झटका आजम खान पिछले 45 सालों से रामपुर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ते आ रहे थे. दस बार आजम खुद विधायक रहे और एक बार उनकी पत्नी तंजीन फातिमा उपचुनाव में जीती थीं. रामपुर उपचुनाव में इस बार भले आजम खां खुद चुनाव नहीं लड़ रहे थे, लेकिन अपने सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर आसिम रजा को पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा रहे थे. आसिम रजा को जून में हुए रामपुर लोकसभा चुनाव में भी आजम खां ने लड़ाया था, लेकिन जीत नहीं सके थे. इसके बाद विधानसभा सीट पर भी प्रत्याशी बना दिया.
रामपुर उपचुनाव में आजम खां भावनात्मक अपील कर रहे थे. वह जनसभाओं में कह रहे थे कि इस्लाम में खुदकुशी हराम है, नहीं तो मैं यह भी कर लेता. वे मुझे हरा नहीं सके तो मुझे ही हटा दिया. इन शब्दों के जरिए जहां अपनी सियासत को बचाने की अपील कर रहे थे तो दूसरी तरफ मंच पर अखिलेश यादव के बगल में दलित नेता चंद्रशेखर आजाद को बैठाकर दलित वोटों की लामबंदी का भी प्रयास किया था. सपा की इन तमाम कोशिशों के बावजूद उपचुनाव में आकाश सक्सेना ने आजम खां से सियासी जंग जीत ली है. रामपुर में आजम खां के जरिए की गई सपा की सियासी किलेबंदी ध्वस्त हो गई.
आजम खान की सियासत में एंट्री आजादी के तीन चुनाव बीत जाने के बाद रामपुर की सियासत में नवाब परिवार ने कदम रखा. रामपुर के नवाबों ने कांग्रेस को अपने लिए मुफीद समझा. रामपुर के नवाब रहे जुल्फिकार अली खान उर्फ मिकी मियां साल 1967 में रामपुर से संसद में पहुंचे. मिकी मियां का रामपुर में उस समय जलवा ऐसा था कि कोई भी शख्स उनके खिलाफ एक शब्द भी बोलकर नहीं निकल सकता था. लेकिन आपातकाल के बाद हालात बदल गए. मामूली हैसियत वाले टाइपराइटर मुमताज का बेटा आजम खां जेल से जेल से छूटकर अपने शहर रामपुर लौटा और नवाब परिवार के लिए चुनौती बन गया.

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