
यूक्रेन सिर्फ बहाना, क्या रूस चुपके से पूरे यूरोप के खिलाफ हाइब्रिड युद्ध शुरू कर चुका, क्यों मिलने लगे ऐसे संकेत?
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शीत युद्ध के बाद से ये पहला मौका है, जब यूरोप डरा हुआ है. कभी पोलैंड के एयरस्पेस पर ड्रोन दिखता है, कभी नाटो की सीमाओं में फाइटर जेट की झलक मिलती है. कभी कुछ यूरोपीय देशों को डर लगता है कि उनके चुनाव में विदेशी दखल दिखेगा. यूरोप का कॉमन दुश्मन है रूस जो खुद फिलहाल यूक्रेन से लड़ाई में व्यस्त दिख रहा है.
अगले कुछ महीनों में रूस और यूक्रेन की जंग शुरू हुए चार साल हो जाएंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हालांकि बीच-बचाव की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मॉस्को के सामने वे भी लाचार हैं. इस लड़ाई से यूक्रेन अकेला प्रभावित नहीं, बल्कि पूरे पश्चिम को डर है कि रूस उसके खिलाफ हाइब्रिड वॉर छेड़ चुका. क्या है हाइब्रिड युद्ध और कितना खतरनाक हो सकता है?
हाइब्रिड वॉर को असल युद्ध का दूर-दराज का रिश्तेदार ही मान लीजिए. लेकिन ये ज्यादा शातिर है और इसलिए ज्यादा खतरनाक भी है.
इसमें शांति और जंग के बीच की लाइन हल्की पड़ जाती है. सैनिक सीधी जंग नहीं लड़ते, बल्कि छिप-छिपाकर हमले होते हैं. इस युद्ध का असर नागरिकों पर भी होता है और अर्थव्यवस्था पर भी.
यह पारंपरिक और आधुनिक तौर-तरीकों का मिलाजुला रूप है. इसमें खुले युद्ध का रिस्क लेने की बजाए पीछे से हमले होते हैं. जैसे साइबर अटैक के जरिए इकनॉमी का नुकसान करना. या फिर दुश्मन देश में अगर चुनाव होने वाले हों तो उसमें हस्तक्षेप करते हुए ऐसे दल को जिता देना, जो आपके पक्ष में हो. कई बार सीमा पर तस्करी को बढ़ाया जाता है, जैसे ड्रग तस्करी, जिससे देश के युवा नशे में पड़ जाएं.
सुनने में ये युद्ध जैसा भले न लगे, लेकिन काम ये खुले युद्ध से भी ज्यादा मारक करता है. इसमें चूंकि लड़ाई का एलान नहीं होता, लिहाजा दूसरे देश को संभलने का पलटवार करने का मौका भी नहीं मिलता. और न ही सीजफायर हो पाता है.
रूस ने इसी तरीके से यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था और मानने को भी राजी नहीं था कि क्रीमिया में अस्थिरता लाने वाले उसके अपने थे. इसी तरह से यूक्रेन के कई हिस्सों में रूस समर्थक बढ़ रहे हैं. ये यूं ही नहीं हुआ, बल्कि मॉस्को ने असंतुष्टों के गुस्से को हवा देते हुए अलगाव की आग भड़काई. ये सारी चीजें हाइब्रिड युद्ध ही हैं.

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