मैनपुरी में परिवार से हारी 'सरकार', उपचुनाव के बहाने एकजुट हुआ मुलायम कुनबा
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मैनपुरी सीट को बचाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने किसी तरह की कोई भी गुंजाइश नहीं छोड़ी. अखिलेश यादव ने चुनाव से पहले चाचा शिवपाल से चली आ रही पुरानी अदावत को खत्म किया. इसके बाद चाचा भतीजे की जोड़ी ने पूरे मैनपुरी में जमकर प्रचार किया. बीजेपी तमाम कोशिशों को बावजूद मैनपुरी लोकसभा सीट पर जीतने में सफल नहीं हुई.
बीजेपी ने मैनपुरी के चुनावी इतिहास में इतना जबरदस्त तरीके से प्रचार कभी नहीं किया था. सीएम योगी आदित्यनाथ को दो बार मैनपुरी में रैली करने के लिए आना पड़ा. केशव प्रसाद मौर्य तो बकायदा डेरा जमाए हुए थे और रघुराज के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. बीजेपी के तमाम नेता और योगी सरकार के दर्जनों मंत्री रघुराज शाक्य को जिताने में जुटे थे. सूबे में सरकार होने के चलते प्रशासन भी अपने घोड़े खोल रखे थे, आरोप लगे कि प्रशासन कई लोगों को वोट देने से रोक रहा, किसी मामले में आरोपी रहे लोगों को पुलिस घर में रहने को या जिले के बाहर जाने को कह रही है. कई लोग उठा लिए गए हैं. इसकी शिकायत करने सपा चुनाव आयोग तक पहुंची थी. इससे समझा जा सकता है कि मैनपुरी सीट जीतने के लिए बीजेपी कितनी बेताब थी.
दरअसल, सपा का गढ़ माने जाने वाले ज्यादातर लोकसभा क्षेत्रों पर बीजेपी अपनी जीत का परचम लहरा चुकी है. कन्नौज, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, बदायूं, इटावा, आजमगढ़ और रामपुर जैसे इलाके में बीजेपी के सांसद हैं. मैनपुरी सैफई परिवार की सीट मानी जाती है. मुलायम सिंह से लेकर धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव तक सांसद रहे हैं. यही वजह है कि बीजेपी यह सीट जीतकर पूरे देश में नया राजनीतिक संदेश देना चाहती थी और 2024 के लिए सूबे में एक मजबूत सियासी आधार खड़ा करना चाहती थी.
बीजेपी के सामने गढ़ बचाने में सफल रही
मैनपुरी सीट को बचाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने किसी तरह की कोई भी गुंजाइश नहीं छोड़ी. नामांकन के बाद से अखिलेश मैनपुरी में डेरा डाले रखा था तो चाचा शिवपाल यादव के साथ भी अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए थे. बीते चुनाव में एक-दो सभाएं करने वाले सैफई परिवार ने घर-घर जाकर वोट मांगे. डिंपल यादव को प्रत्याशी घोषित के करने के बाद से ही अखिलेश यादव ने पूरे उपचुनाव की कमान खुद संभाल ली. ऐसा प्रचार अखिलेश ने करहल विधानसभा सीट पर अपने खुद के चुनाव में भी नहीं किया था.
मुलायम की कर्मभूमि से डिंपल सांसद
सपा के घर की सीट बचाकर अपना दबदबा कायम रखा. मुलायम सिंह यहां से खुद पांच बार सांसद रहे. मैनपुरी सीट के बहाने प्रत्यक्ष रूप से सैफई परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. ऐसे में मैनपुरी सीट खोने का सीधा असर अखिलेश यादव के सियासी भविष्य पर भी पड़ता. इसीलिए लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक तल्खी को भुलाते हुए अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव को भी साथ लिया. चाचा-भतीजे की एकता ही बीजेपी के लिए मैनपुरी सीट पर हार की वजह बनी और डिंपल यादव एक बार फिर से सांसद बनने में सफल रहीं. डिंपल के सियासी इतिहास में यह सबसे बड़ी जीत है.
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