
'मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है', गुलजार का ये गाना हुआ रिजेक्ट, आशा भोसले ने दी पहचान
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दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का आज दूसरा दिन शानदार रहा. यह तीन दिवसीय कार्यक्रम 24 नवंबर तक चलेगा. साहित्य आजतक के मंच पर गुलजार साहब ने अपनी कविताओं और गानों के किस्सों से सबका दिल जीता.
दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का आज दूसरा दिन शानदार रहा. यह तीन दिवसीय कार्यक्रम 24 नवंबर तक चलेगा. साहित्य आजतक के मंच पर गुलजार साहब ने अपनी कविताओं और गानों के किस्सों से सबका दिल जीता.
इंडस्ट्री में हुए 60 साल गुलजार साहब को फिल्म इंडस्ट्री में 60 साल हो गए. कई गाने और फिल्मों का डायरेक्शन किया. आज भी वो लेजेंड हैं. जवानी का राज बताते हुए गुलजार साहब ने कहा- देखिए, मैं इस बात की सफाई बाद में दूंगा. बता दूं कि इसका कोई फॉर्मूला तो है हीं. अगर होता तो हकीम की तरह दवाई की पुड़िया बनाकर बेचता. मैं बताऊं तो मैं कभी बड़ा नहीं हुआ इसलिए मेरा बचपना गया नहीं. यहां तक पहुंचा हूं, जिसे आप जवानी कहते हैं. मैं उनसे भी छोटे बच्चों के साथ खेलता हूं, पढ़ता हूं और बात करता हूं. मैंने बीते साल 14 किताबें बच्चों के लिए लिखी हैं. बच्चों के साथ रहेंगे तो आप जवान रहते हैं.
साल 1963 में फिल्म के लिए गीत लिखे. मैं 1934 में पैदा हुआ. और साल 1963 में मैंने पहली फिल्म के लिए गाने लिखे थे. 'उम्र गुजरकर सुफैद हो गई'. दिल तो बच्चा है जी. मैं तो पहले ही बोल चुका हूं कि मेरा दिल बच्चा ही है. उम्र कब की बरसकर सफेद हो गई. लेकिन इस गाने में सबसे खूबसूरत बात ये है कि जब ये गाना राहत भाई ने गाया है तो उन्होंने लाहौरी डायलेक्ट में गाया है. आपके गाने ने मुझे राहत साहब की याद दिला दी.
गुलजार साहब के गानों में जेनेरेशन गैप नहीं मेरा कुसूर नहीं. क्योंकि आज की जेनरेशन मुझे बड़ी नहीं होने देती. मैं हर उम्र का कवि हूं. मैं हर उम्र पर गीत लिखता हूं. तुम बूढ़े हो गए होंगे. मैं नहीं हुआ हूं. आप खुद भी कितनी उम्रों में जीते हैं. कितनी उम्र में बातचीत करते हैं. मैं इतनी उम्र में गाने लिखता हूं.
आशा भोसले 90 साल से ज्यादा की हैं, लेकिन आज की जेनरेशन भी उनके गीत सुनते हैं आशा कहती हैं कि मैं जब गाती हूं तो दूसरी दुनिया में चली जाती हूं. 'मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास है', ये गाना फिल्म 'इजाजत' का है. ये गाना आज की जेनरेशन भी सुनती है. कहां से आता है ये मैजिक. गुलजार ने कहा- जिस वक्त गाना लिखा जाता है, तो हमारे सामने वो कहानी और स्क्रिप्ट और स्थिति होती है तब सबसे जरूरी होती है. अगर ये तीनों चीजें जस्टिफाई न करे तो गाना अजीब लगेगा. फिल्म की कहानी किसी दूसरों पर भी गुजरी होगी. किसी और ने भी ऐसी स्थिति देखी होगी तो वो अपनी तरह से इसका मतलब देख सके और निकाल सके.
जब ये गाना बना था तो मैंने जब ये गाना पंचम दा (आरडी बरमन) को सुनाया था. तो उन्होंने कहा था कि ये बहुत अच्छा सीन है. मैंने कहा कि ये सीन नहीं गाना है. तो हार्मोनियम पर कुछ पेपर्स पड़े थे तो उन्होंने मेरे गाने के बोल सुनकर वो साइड कर दिए थे. उन्होंने कहा कि तुझे मीटर तो आता नहीं, पता नहीं कहां से लिखना सीख लिया. मैंने कहा कि ये कहानी है, ये सीन है. मेरे पास कल कोई चैनल आएगा और कहेगा कि इसकी ट्यून बनाकर दो. तो वहां उसकी बात सुनकर कुछ म्यूजीशियन्स मुस्कुराए भी. मैंने कहा कि पंचम ये गाना मीटर नहीं है. इतने में पंचम के कान में एक आवाज आई. वो आशा जी की थी. बड़े अच्छे से नोट थे. तो पंचम ने पूछा आशा जी से. आशा वो गाना गुनगुना रही थीं. 'लौटा दो' के नोट्स आशा जी ने गुनगुनाकर बताए. वो उन्होंने बहुत पसंद आए. दिखाना वो पेपर. फिर वो गाना उन्होंने शुरू किया. पहली लाइन, दूसरी लाइन और ऐसे करते-करते उन्होंने पूरा गाना कम्प्लीट कर दिया.

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