
भारत से तनाव के बीच पाकिस्तान से छिनी मजबूत लाइफ लाइन, दोस्तों का दायरा भी हुआ छोटा
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कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के बर्ताव से हमें दो अहम बातें पता चलती हैं. पहली, अपने परमाणु ब्लैकमेल और शेखी बघारने के बावजूद पाकिस्तान भारत के साथ पारंपरिक युद्ध लड़ने से कतराता है. दूसरी, जब भी वह खुद को बचाना चाहता है, तो वह वॉशिंगटन या अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर निर्भर हो जाता है.
भारत की जवाबी कार्रवाई के बीच पाकिस्तान को शुक्रवार को यह एहसास हो गया कि उसकी सबसे भरोसेमंद लाइफ लाइन भी अब छीन ली गई है. इतिहास पर गौर करें तो पाकिस्तान इस भरोसे से भारत के साथ टकराव में रहा है कि अगर हालात मुश्किल हुए तो अमेरिका उसकी मदद करेगा, जिसके पास वह SOS लेकर दौड़ा चला आएगा. लेकिन भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद अमेरिका ने भी पाकिस्तान से सॉफ्ट लैंडिंग की सुविधा अब छीन ली है.
परमाणु हमले की खोखली धमकी
पाकिस्तान की मानसिकता को समझने और अमेरिका पर उसकी निर्भरता को समझने के लिए साल 1999 की गर्मियों को याद करना अहम है, जब पाकिस्तान ने कारगिल की रणनीतिक रूप से अहम मानी जाने वाली पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी.
पाकिस्तान को सजा दिए बिना जाने देने के लिए तैयार न होते हुए भी भारत ने एक साहसिक कदम उठाया. उस समय सेना की स्ट्राइक टुकड़ियों को अपने बेस कैंप छोड़ने की तैयारी करने को कहा गया था. लगभग उसी वक्त अमेरिकी स्पाई सैटेलाइट ने राजस्थान में ट्रेनों पर लोड किए जा रहे भारतीय टैंकों और भारी तोपों की तस्वीरें कैद कीं. मैसेज साफ था कि भारत कारगिल में घुसपैठ का बदला लेने के लिए पाकिस्तान पर हमला करने वाला था.
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सेना के इस कदम से पहले पाकिस्तान हमेशा की तरह ही इनकार और धमकी की रणनीति अपना रहा था. सार्वजनिक मंचों पर नवाज शरीफ सरकार कारगिल में पाकिस्तान की भूमिका से इनकार कर रही थी. साथ ही वह यह भी संकेत दे रही थी कि अगर भारत ने संघर्ष को बढ़ाने की हिम्मत की तो परमाणु विकल्प भी अपना सकती है.

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