
'प्रोड्यूसर ने किया बुरा बर्ताव, नहीं दिए पैसे', पहली फिल्म भुलाना चाहती हैं राधिका आप्टे
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राधिका ने डायरेक्टर महेश मांजरेकर की 2005 में आई फैंटसी कॉमेडी फिल्म 'वाह लाइफ हो तोह ऐसी' में सपोर्टिंग रोल किया था. उन्होंने अपने करियर की निराशाजनक शुरुआत के लिए प्रोड्यूसर संगीता अहिर को जिम्मेदार ठहराया. एक्ट्रेस का कहना हैं कि वे अपनी पहली फिल्म को भूल जाना चाहती हैं.
राधिका आप्टे ने फिल्म इंडस्ट्री में 20 साल पूरे कर लिए हैं. एक्ट्रेस का कहना हैं कि वे अपनी पहली फिल्म को भूल जाना चाहती हैं. राधिका ने एक्टर-डायरेक्टर महेश मांजरेकर की 2005 में आई फैंटसी कॉमेडी फिल्म 'वाह लाइफ हो तोह ऐसी' में सपोर्टिंग रोल किया था. इसमें शाहिद कपूर, संजय दत्त, अमृता राव और अरशद वारसी समेत कई कलाकार थे. राधिका ने अपने करियर की निराशाजनक शुरुआत के लिए प्रोड्यूसर संगीता अहिर को जिम्मेदार ठहराया.
पहली फिल्म में राधिका ने झेलीं दिक्कतें
इंडियन एक्सप्रेस संग बातचीत में राधिका आप्टे ने कबूल किया कि उन्हें अपनी पहली फिल्म को स्वीकार करने में अच्छा नहीं लगता. उन्होंने कहा, 'भयानक प्रोड्यूसर्स ने मुझे रहने की जगह नहीं दी, पैसे नहीं दिए. जब मेरी मां और मैंने उनसे कॉन्ट्रैक्ट साइन करने को कहा, तो उन्होंने कहा, 'अरे, उर्मिला मातोंडकर ने भी कॉन्ट्रैक्ट नहीं साइन किया.' मुझे नहीं पता कि उन्होंने साइन किया या नहीं, लेकिन उन्होंने हमारे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया. महेश मंजरेकर बहुत अच्छे इंसान थे. इसी वजह से मैं उस फिल्म को भूल जाना चाहती हूं, क्योंकि प्रोडक्शन बहुत खराब था. और मैं इसे जोर देकर कहती हूं.'
कैसे मिली थी राधिका को ये फिल्म?
राधिका ने यह भी याद किया कि उन्हें 'वाह लाइफ हो तोह ऐसी' में सपोर्टिंग रोल कैसे मिला. उन्होंने बताया, 'मैं एक नाटक कर रही थी जिसका नाम था ब्रेन सर्जन. वह अच्छा नाटक था. हमने एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में अवॉर्ड जीता. महेश मांजरेकर जजों में से एक थे. नाटक के बाद उन्होंने मुझे फोन किया और कहा, 'मैं तुम्हें कास्ट करना चाहता हूं'.' लेकिन उस समय मांजरेकर जिन तीन फिल्मों का निर्देशन कर रहे थे, उनमें से दो, 2004 की 'रक्त' और 2007 की फिल्म 'देह' में लेने के लिए वो राधिका को बहुत यंग समझते थे.
राधिका ने आगे कहा, 'फिर मैंने लंबे समय तक कोई फिल्म नहीं की. मैंने कॉलेज पूरा किया, और फिर काफी समय बाद वापस फिल्मों में आई. इसलिए मैं उस फिल्म को वाकई उन फिल्मों में गिनती ही नहीं हूं जो मैंने कीं. लेकिन हां, दो दशक हो गए.' उसके बाद उन्होंने एक बंगाली फिल्म और कुछ मराठी फिल्में कीं, फिर राम गोपाल वर्मा की 2010 की पॉलिटिकल एक्शन थ्रिलर 'रक्त चरित्र' से हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया, जो उसी साल तेलुगू में भी बनी थी.

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