देश की पहली कार से इमरजेंसी तक, संजय गांधी की कहानी
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इंदिरा और कांग्रेस के लिए संजय गांधी जरूरी कहे जाते हैं. हालांकि उनके जीवन में ऐसे भी किस्से रहे जब उन्होंने अधिकारियों को थप्पड़ मारे और गालियां बकी, लेकिन उसी संजय के बारे में ये भी मशहूर है कि गोरखपुर के वीर बहादुर सिंह को सड़क से उठा कर यूपी का मुख्यमंत्री बनाया. तो देश की पहली कार से ले कर इमरजेंसी तक संजय गांधी कैसे जिम्मेदार थे, क्यों उन्हें इंदिरा का असल उत्तराधिकारी कहा जाता है और कैसे उनकी जिद से लाखों लोगों ने जबरन नसबंदी झेली? जानिए संजय गांधी की कहानी और उनके जीवन के अनसुने किस्से.
तारीख थी 23 जून 1980. प्रधानमंत्री आवास के लिए ये आम सुबह थी. लोग जुटने लगे थे, रोज की तरह. रोज की तरह प्रधानमंत्री के दफ्तर के लिए निकलने का इंतज़ार हो रहा था. रोज की ही तरह एक मेटाडोर आज भी निकली थी। ये सफ़दरगंज हवाई अड्डे को जा रही थी. यहाँ मेटाडोर में बैठे उस शख्स का इंतेजार कर रहे थे दिल्ली फ्लाइंग क्लब के चीफ इन्स्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना. दिल्ली फ्लाइंग क्लब में एक नया जहाज आया था. पिट्स एस 2 ए. बहुत हल्का विमान, हवा में कलाबाजियों के लिए बना. वार्निंग थी कि अभी इसे प्रोफेशनल पायलटस के अलावा कोई न उड़ाए. लेकिन इस आदमी पर वार्निंग का फ़र्क पड़ता तो क्या ही बात थी. दोनों उस प्लेन में बैठे और विमान ने सवा 7 बजे उड़ान भर ली. जहाज कलाबाजियाँ खा रहा था, लेकिन अभी कुछ और होना था. दस मिनट बाद ही विमान उड़ाते शख्स ने उसे नीचे ला दिया. तय मानकों से नीचे ला कर अब गोते वहाँ लग रहे थे. और फिर कुछ ही देर में उनका कंट्रोल विमान पर खत्म हो गया. घर्र घर्र की आवाज आई और प्लेन तेजी से नीचे आने लगा. ये उस घर की छत से भी साफ देखा जा सकता था जहां से वो शख्स निकला था. वो प्लेन क्रैश हो चुका था.
15 मिनट में मौके पर एंबुलैंस और एयरक्राफ्ट पहुंचे. . प्लेन से दो शव निकाले गए. अब वहाँ गाड़ियों के सायरन की आवाज गूंजने लगी. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आईं थीं. कार से उतरते ही इंदिरा दौड़ रही थीं. उन शवों को देखकर वो फुट फूट कर रोने लगी क्योंकि उनमें एक शव उनके अपने बेटे संजय का था.
इंदिरा गांधी के बेटे , राजीव गांधी के भाई और मेनका गांधी के पति संजय गांधी का .. जिसके इशारों से उस वक्त देश और कांग्रेस नाच रहे थे, एक प्लेन हादसे में जान गंवा बैठे.
इतिहास ने संजय गांधी को कई तरीके से याद रखा हुआ है. राजीव गांधी के बरअक्स संजय एक लापरवाह या गैरजिम्मेदार भाई बताए गए. कभी उनकी पहचान हुई एक ऐसे बेटे के तौर पर जिसने माँ की सत्ता का इस्तेमाल अपने लिए ज्यादा किया. अपने लिए भी नहीं बल्कि अपनी जिद के लिए. गांवों के बुजुर्ग आज भी अपनी स्मृति में संजय गांधी की जबरदस्ती नसबंदी योजना जिंदा रखे हुए हैं. आपातकाल के लिए जिम्मेदार इंदिरा थीं, लेकिन पीछे का दिमाग़ संजय थे, कौन नहीं कहता. रशीद किदवई पत्रकार हैं, अरसे तक कांग्रेस को करीब से देखा है, वो संजय के व्यक्तित्व का खाका कुछ यूं खींचते हैं-
संजय गांधी धुन के पक्के इंसान थे. जो ठान लिया वो करना ही होता था. उनका एक चर्चित कथन अक्सर हुआ करता था- Convince me or get convinced. यानी या तो मेरी बात मान लो या मुझे अपनी बात मानने के लिए मना लो.
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