
दलित-OBC को कांग्रेस की तरफ मोड़ना चाहते हैं राहुल गांधी, लेकिन इसमें अखिलेश-लालू क्यों पार्टनर बनेंगे?
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राहुल गांधी को INDIA ब्लॉक की परवाह न होने की एक वजह ये भी है कि 2029 के आम चुनाव से पहले होने वाले ज्यादातर विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए खास मायने नहीं रखते - ऐसे में अखिलेश यादव और लालू यादव जैसे नेताओं के लिए कांग्रेस का भी कोई महत्व नहीं रह जाता.
राहुल गांधी दिल्ली में भी जातिगत जनगणना कराने का जिक्र करना नहीं भूलते. तब भी जबकि सबको मालूम है, शायद राहुल गांधी को भी, यूपी-बिहार जैसे राज्यों की तरह दिल्ली ऐसी चीजों की कोई अहमियत नहीं है.
जातिगत जनगणना की मुहिम राहुल गांधी तभी से चला रहे हैं जब संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण पर संसद में बहस चल रही थी. तभी राहुल गांधी ने कांग्रेस का वो स्टैंड भी बदल लिया जिसमें वो समाजवादी पार्टी और आरजेडी जैसी पार्टियों के महिला आरक्षण में ओबीसी कोटे के खिलाफ हुआ करती थी.
कांग्रेस कार्यकारिणी में सरकार बनने पर जातिगत जनगणना कराने का प्रस्ताव तो पारित किया ही गया, राहुल गांधी ने 2023 के विधानसभा चुनावों में घूम घूम कर कास्ट सेंसस का वादा किया था. आरजेडी के साथ तो पहले से ही थे, लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन भी इसी मकसद से किया - और उसका फायदा भी भरपूर मिला.
लेकिन, कांग्रेस के प्रति अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे क्षेत्रीय दलों के नेताओं के रुख से लगने लगा है कि वे कांग्रेस के साथ बने रहने के पक्षधर नहीं हैं - और कास्ट पॉलिटिक्स को लेकर राहुल गांधी का ताजा रुख भी यही बता रहा है.
ऐसी सूरत में जबकि राहुल गांधी दलित-ओबीसी और मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस के साथ लेने की कोशिश कर रहे हैं, अखिलेश यादव और तेजस्वी कांग्रेस के साथ रहे थे घाटे में ही रहेंगे - और यही वजह है कि अगले आम चुनाव तक राहुल गांधी को भी इंडिया ब्लॉक बना रहे या खत्म हो जाये, बिल्कुल भी परवाह नहीं लगती.
दिल्ली में दलित इंफ्लुएंसर और बुद्धिजीवियों के एक कार्यक्रम में राहुल गांधी का भाषण सुनने के बाद ये बातें और भी साफ हो जाती हैं.

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