
दरिंदगी, तस्करी और मौत से जंग... दिल दहला देगी दो साल की बेबी फलक की दर्दनाक कहानी
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दिल्ली के एम्स में भर्ती दो साल की फलक की कहानी ने पूरे देश को झकझोर दिया था. इंसानी दरिंदगी, मानव तस्करी और मौत से जंग की ये दर्दनाक सच्चाई किसी भी इंसान का कलेजा छलनी कर सकती है. पढ़ें एक मासूम के साथ दरिंदगी की खौफनाक कहानी.
Baby Falak case 2012: शेफाली शाह की वेब सीरीज़ दिल्ली क्राइम के सीज़न 3 की हर तरफ चर्चा हो रही है. समीक्षकों ने नेटफ्लिक्स की इस सीरीज़ को खूब सराहा है. यहां तक कि इस सीरीज़ ने अंतर्राष्ट्रीय एमी पुरस्कार जीता है. जघन्य अपराधों का संवेदनशील चित्रण करने वाली इस सीरीज़ का यह सीजन साल 2012 के कुख्यात बेबी फलक केस पर आधारित है. जिसकी कहानी आपको सन्न कर देगी. आइए आपको बताते हैं कि आखिर दिल्ली का बहुचर्चित बेबी फलक केस क्या था?
13 साल पहले दो साल की उस मासूम बच्ची को लहूलुहान हालत में एम्स ट्रॉमा सेंटर लाया गया था.कोई नहीं जानता था कि वो कौन है? कहां से आई है? या किसने उसके साथ ये बर्बरता की? सब उसे बचाने में जुट गए थे. डॉक्टर, नर्सें और देशभर के लोग जो उसके लिए दुआ कर रहे थे. लेकिन किस्मत ने इस नन्ही जान पर रहम नहीं किया. फलक की कहानी सिर्फ एक बच्ची की नहीं, बल्कि उस समाज की है जहां मासूमियत भी सुरक्षित नहीं.
18 जनवरी 2012, नई दिल्ली वो एक ठंडी शाम थी. दिल्ली के एम्स ट्रॉमा सेंटर में अचानक एक 15 साल की लड़की दाखिल हुई. उसकी गोद में दो साल की एक मासूम घायल बच्ची थी, जो बेहोश थी. उस लड़की ने खुद को बच्ची की मां बताया और स्टाफ से बोली कि बच्ची बिस्तर से गिर गई थी. डॉक्टरों ने बच्ची को देखा तो उसे देखकर वो सन्न रह गए. उस मासूम का सिर फट चुका था, दोनों बाजू टूटे हुए थे. पूरे शरीर पर इंसानी दांतों से काटने के निशान थे. उसके गालों पर गर्म लोहे से दागे जाने के निशान थे. यह कोई सामान्य गिरना नहीं लग रहा था. डॉक्टरों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बच्ची को आईसीयू में भर्ती किया गया.
नर्सों ने दिया नया नाम 'फलक' डॉक्टरों का कहना था कि उन्होंने कभी इतनी बुरी हालत में किसी बच्चे को नहीं देखा. यह केस 'बैटर्ड बेबी सिंड्रोम' का लग रहा था, जो भारत में दुर्लभ था. जो लड़की बच्ची को लेकर वहां आई थी, वो अचानक गायब हो गई थी. बच्ची की पहचान और नाम अज्ञात था. लिहाजा, ICU में तैनात नर्सों ने ही उसे प्यार से 'फलक' नाम दे दिया. धीरे-धीरे देशभर के लोगों का ध्यान उस बच्ची पर गया और हर कोई उसके ठीक होने की दुआ करने लगा. लेकिन पुलिस के लिए असली सवाल था ये था कि आखिर ये बच्ची कौन थी? और उसके साथ ये दरिंदगी किसने की थी?
डॉक्टरों की पहली रिपोर्ट एम्स के ट्रॉमा सेंटर में डॉक्टर सुमित सिन्हा और उनकी टीम फलक का इलाज कर रहे थे. स्कैनिंग से पता चला कि उसके दिमाग में खून का थक्का था. इंसानी काटने के निशान उसके छोटे शरीर पर फैले हुए थे, जो किसी करीबी रिश्तेदार की क्रूरता की ओर इशारा कर रहे थे. डॉक्टरों ने कहा कि बच्ची का ये हाल लगातार प्रताड़ना की वजह से हुआ था. फलक को वेंटिलेटर पर रखा गया था. वह कोमा में थी. सांस लेने में दिक्कत हो रही थी.
नाबालिग लड़की हिरासत में उधर, पुलिस इस मामले की छानबीन में जुट गई थी. इसी के चलते पुलिस ने 15 साल की उस लड़की को हिरासत में ले लिया था, जो बच्ची को अस्पताल लेकर आई थी. वो लड़की घबरा रही थी और साफ तौर पर कुछ बता नहीं पा रही थी. पुलिस ने उस लड़की को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के हवाले कर दिया. बाद में उसे जुवेनाइल होम भेज दिया गया.

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