दरभंगा: 'साइकिल गर्ल' ज्योति की नहीं बदली किस्मत, अब पाई-पाई को हुई मोहताज
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'साइकिल गर्ल' से पहचान बनाने वाली ज्योति का अब साइकिल चलाने का मन नहीं करता. उसके पास घर के खर्च के लिए पैसे जुटाना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में ज्योति ने सरकार से नौकरी देने की मांग की है.
कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान चर्चा में आई दरभंगा की 'साइकिल गर्ल' ज्योति अभी आर्थिक तंगी की सामना कर रही है. वह अपने बीमार पिता को गुरुग्राम से दरभंगा साइकिल पर बिठाकर लायी थी. देश में ही नहीं, विदेश तक उसकी बहादुरी और हौसले के खूब चर्चे हुए थे. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी ट्विटर पर ज्योति की तस्वीर डालकर तारीफ की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर के बहादुर बच्चों के साथ ज्योति से वर्चुअल बातचीत की और उसकी हिम्मत और साहस को सराहा था.
दरअसल, लॉकडाउन के दौरान जब सब कुछ बंद था, तब हजारों लोग पैदल या कुछ और जुगाड़ कर देश के कोने-कोने से अपने पैतृक गांव की ओर चल पड़े थे. इसमें ज्योति भी थी. दरभंगा जिले में सिंहवाड़ा प्रखंड के सिरहुल्ली गांव की ज्योति लॉकडाउन के दौरान अपने पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बैठाकर गुड़गांव से 8 दिन में करीब 1300 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद दरभंगा पहुंची थी.
ज्योति की गरीबी को देखकर कई लोगों ने आर्थिक मदद की थी. देश के कई बड़े नेताओं ने पढ़ाई-लिखाई से लेकर उसकी शादी तक के खर्चे उठाने की बात कही थी. इसमें प्रियंका गांधी वाड्रा से लेकर तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी सहित कई बड़े नेता शामिल हैं. सुर्खियों में आने के बाद बिहार सरकार के कई अधिकारी और मंत्रियों ने भी ज्योति के घर पहुंचकर पूरी पढ़ाई का खर्च उठाने का भरोसा दिया था.
लेकिन महज दो वर्ष में ही ज्योति फिर से वहीं आ पहुंची, जहां से सफर की शुरुआत की थी. ज्योति की माने तो लोगों ने जरूर कुछ पैसे दिए. हालांकि अब कोई उन्हें देखभाल करने वाला नहीं है. यहां तक की जिसने पढ़ाई और शादी का भरोसा दिया था, वो भी अब अपने वादे से मुकर गए हैं. ज्यादातर लोग अब फोन नहीं उठाते हैं. जो फोन उठाते भी है वो पहचानने से इनकार कर देते हैं. अब ज्योति के सिर से पिता का साया उठ चुका है. घर की माली हालत खराब है. मां फूलो देवी आंगनबाड़ी में मामूली सहायिका हैं. आमदनी का जरिया ज्यादा नहीं होने के कारण ज्योति अब आगे पढ़ने के अलावा नौकरी करने की इच्छा जाहिर कर रही है, ताकि किसी तरह घर चला सके.
ज्योति बताती है कि मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद इंटर में नाम लिखाने के लिए किसी ने मदद नहीं की. खुद किसी तरह रुपये का इंतजाम कर नामांकन कराया. अब उन्हें अपने परीक्षा फॉर्म भरने की चिंता सताए जा रही है. फिलहाल कोई आमदनी नहीं होने के कारण कुछ पैसे उनके रिश्तेदार देते हैं. दो वर्षो में उनके जीवन में कुछ बदलाव नहीं हुआ.
ज्योति की मां फूलो देवी ने भी बताया कि पूरा परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा है. मात्र 2800 रुपये उन्हें आगनबाड़ी केंद्र से हर महीने मिलता है. जैसे-तैसे घर चला रही है. दूसरी बेटी प्राइवेट फैक्ट्री में काम कर रही है. बस किसी तरह जीवन चल रहा है.
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