डॉलर, पाउंड, रुपया... अफगानी करेंसी के आगे सब फेल, PAK तो बिल्कुल बेदम... जानिए तालिबानी शासक ने कैसे किया ये कमाल?
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Afghanistan में लगभग 3.4 करोड़ लोग गरीबी में जीवन-यापन करने को मजबूर हैं. वहीं साल 2021 के डाटा के अनुसार, पूरे देश की जनसंख्या 4.01 करोड़ है. ऐसे देश की करेंसी का इस रफ्तार से आगे बढ़ना सभी को हैरान कर रहा है, लेकिन इसके पीछे कई कारण भी हैं.
सबसे मजबूत इकोनॉमी और करेंसी की बात होती है, तो फिर जो नाम जुबां पर आता है वो है अमेरिका और डॉलर (US Economy), लेकिन अब डॉलर (American Dollar) ही नहीं पाउंड, यूरो और भारतीय रुपया (Indian Rupee) सब पीछे रह गए हैं और सितंबर तिमाही में अफगानिस्तान की करेंसी 'Afghani' सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बनकर उभरी, जो अपने आप में बेहद चौंकाने वाली बात है. ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि तालिबान के नेतृत्व वाला अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब मुल्कों में शामिल है और वहां के लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए भी मोहताज हैं. फिर आखिर क्या कारण है कि इस देश की मुद्रा सबसे तेजी से भाग रही है? आइए समझते हैं...
सभी करेंसियों को पीछे छोड़ा वर्ल्ड बैंक (Worls Bank) के मुताबिक, अफगानिस्तान (Afghanistan) में लोगों को जीवनयापन के लिए जरूरी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं, वहीं अशिक्षा, बेरोजगारी भी चरम पर है. साल 2021 में तालिबान की देश में एंट्री के बाद से तो हालात और भी बदतर हुए हैं. इसके बावजूद अफगानिस्तान की करेंसी (Afghan Currency) का बोलबाला है और सितंबर तिमाही में इसने दुनिया की तमाम करेंसियों को पीछे छोड़ दिया.
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट की मानें तो अफगानी करेंसी इस अवधि में दुनिया में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली करेंसी (World's Best Performing Currency) बनी है. 26 सितंबर तक के आंकड़ों के अनुसार, एक डॉलर के मुकाबले अफगानी की वैल्यू 78.25 है. वहीं सोमवार 02 अक्टूबर को 1 डॉलर 77.751126 अफगानी के बराबर बना हुआ था.
गरीबी से जूझ रहे देश ने किया कमाल बीती तिमाही में अफगानी की वैल्यू 9 फीसदी तक बढ़ी है, ये आंकड़ा इसे दूसरी बड़ी करेंसियों से भी आगे रखता है. भारी निराशाओं से घिरे हुए अफगानिस्तान की मुद्रा में आई ये तेजी हैरान करने वाली इसलिए भी है, क्योंकि UN के मुताबिक, अफगानिस्तान में गरीबी की बड़ी मार है और देश के लगभग 3.4 करोड़ लोग गरीबी में जीवन-यापन करने को मजबूर हैं. वहीं साल 2021 के डाटा के अनुसार, पूरे देश की जनसंख्या 4.01 करोड़ है. गरीबी रेखा के नीचे जी रहे अफगानों का आंकड़ा साल 2020 में 1.5 करोड़ था. यानी दो साल और तालिबान के आने के बाद ये गरीबों की तादाद 1.9 करोड़ बढ़ गई है.
देश में इन करेंसियों के इस्तेमाल पर पाबंदी अगर अफगानी में आई तेजी के पीछे की वजह को जानने की कोशिश करें, तो तालिबान द्वारा देश की करेंसी को मजबूत करने के लिए उठाए गए कदमों का इसमें अहम रोल रहा है. देश में अमेरिकी डॉलर (US Dollar) और पाकिस्तानी रुपये (Pakistan Rupee) के उपयोग की इजाजत नहीं है. ऑनलाइन ट्रेडिंग भी अफगानिस्तान में अपराध है और ऐसा करने वालों को जेल हो सकती है. देश में हवाला का कारोबार भी चरम पर है और मनी एक्सचेंज का काम भी इसी के जरिए होता है. तस्करी के जरिए अफगानिस्तान में पहुंचने वाले अमेरिकी डॉलर का एक्सचेंज भी इसीके जरिए धड़ल्ले से हो रहा है.
अंतराष्ट्रीय मदद और प्राकृतिक संसाधनों से बूस्ट हालांकि, ब्लूमबर्ग की मानें तो अफगानी में आई 9 फीसदी की इस तेजी में संयुक्त राष्ट्र के जरिए अतंरराष्ट्रीय स्तर पर देश की माली हालत को देखते हुए मुहैया कराई जा रही सहायता रासि का भी अहम रोल है. गौरतलब है कि देश में तालिबान राज के बाद अब तक यूएन ने देश को 5.8 अरब डॉलर की सहायता दी है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, इस साल देश को 3.2 अरब डॉलर की मदद की दरकार है और इसमें से 1.1 अरब डॉलर की सहायता मिल चुकी है. इस मदद के अलावा अफगानिस्तान में मौजूद प्राकृतिक संसाधन भी अहम भूमिका निभाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लिथियम का बड़ा भंडार है, जिसकी वैल्यू करीब 3 ट्रिलियन डॉलर आंकी जा रही है.
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