
ज्ञानवापी का कुआं, औरंगजेब का फरमान और शिवलिंग का दावा... सदियों पुराना है ये विवाद!
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वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का मसला आजकल सुर्खियों में है. मामला लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चल रहा है. तमाम ऐतिहासिक दलीलें दी जा रही हैं. 1930 के दशक में काशी विश्वनाथ मंदिर का केस लड़ने वाले प्रसिद्ध वकील कैलाशनाथ काटजू ने अपनी किताब में मंदिर-मस्जिद और इनसे जुड़ी अदालती दस्तावेजों को लेकर काफी कुछ लिखा है.
...16 मई 2022 को वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में चल रहे कोर्ट कमिश्नर के सर्वे पर सबकी निगाह थी. ये सर्वे श्रृंगार गौरी में पूजा करने का अधिकार पाने के लिए पांच महिलाओं की याचिका पर कराया जा रहा था. अचानक ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा हिंदू पक्ष की ओर से किया गया. पूरा का पूरा मामला ही पलट गया. हिंदू पक्ष ने हर हर महादेव के जयकारे के साथ 'बाबा मिल गए' का नारा बुलंद किया तो मुस्लिम पक्ष ने शिवलिंग की बजाय इसे फव्वारा बताया.
अचानक बहस शुरू हो गई 17वीं सदी के मुगलकाल की, औरंगजेब की, काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास की, नंदी की मूर्ति की, श्रृंगार गौरी, ज्ञानवापी कैंपस के अंदर की दीवारों पर मौजूद धार्मिक चिन्हों की और उन तमाम विवादों की जो दशकों से अदालतों में बहस का केंद्र बने हुए हैं और जो सदियों पुरानी इतिहास की परतों को कुरेदने को मजबूर करती हैं.
वाराणसी कोर्ट में 'शिवलिंग' को लेकर याचिका दायर हुई जिसके बाद कोर्ट ने वजूखाने तक एंट्री रोकने और 'शिवलिंग' को सुरक्षित करने का प्रशासन को निर्देश दिया. अब काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट अदालत का फैसला आने तक ज्ञानवापी मस्जिद में मिले 'शिवलिंग' को सौंपने की मांग कर रहा है ताकि पूजा के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर के हवाले कर दिया जाए. मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया और दावा किया कि कुछ साल पहले तक इसका इस्तेमाल किया जाता था. शिवलिंग को लेकर दावे के साथ ही लोअर कोर्ट-हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तीनों जगह इस मामले को लेकर बहस तेज हो गई. सियासी प्रतिक्रियाएं आने लगीं और गलियों-चौक-चौराहों पर ये मुद्दा चर्चा का केंद्र बन गया.
क्या कहता है इतिहास?
काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद का मामला साल 1991 से कोर्ट में है. इससे पहले भी अंग्रेजी काल से ही ये मामला कई बार अदालतों में पहुंचता रहा. काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास कई शताब्दी पुराना है. भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से विश्वेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग सबसे प्रसिद्ध है क्योंकि इसे दुनिया के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है. काशी विश्वनाथ के प्राचीन मंदिर का सबसे पहला उल्लेख पुराणों में मिलता है. इतिहासकारों के मुताबिक इसे सन 1194 में मुहम्मद गोरी के कराए मंदिर विध्वंस के बाद इसे दोबारा बनवाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान ने तोड़वा दिया. यह बार टूटा और बना.
साल 1585 में पुरानी जगह पर आखिरी बार अकबर के सेनापति राजा मान सिंह और वित्त मंत्री राजा टोडर मल द्वारा इस मंदिर को बनवाया गया. लेकिन औरंगजेब के काल में इसे तोड़कर वहां मस्जिद बनवा दिया गया. जिसे ज्ञानवापी या आलमगीर मस्जिद के नाम से जाना जाता है. काशी विश्वनाथ के जिस भव्य मंदिर को आज दुनिया देख रही है उसका निर्माण 1777 में इंदौर की मराठा शासक रानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा करवाया गया था.

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