'चीनी कम' को मिले रिव्यू ने तोड़ा था दिल, शाहरुख सलमान की फिल्मों को क्रिटिक्स की जरूरत नहीं': आर बाल्की
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कुछ महीने पहले डायरेक्टर आर बाल्की की फिल्म आई थी, 'चुप'. कई फिल्म समीक्षकों को लगा कि यह फिल्म उनके प्रोफेशन पर कटाक्ष है. इंडस्ट्री में क्रिटिक्स और रेटिंग्स सिस्टम पर सवाल उठते रहे हैं. डायरेक्टर आर बाल्कि इस मुद्दे पर हमसे डिटेल में बातचीत करते हैं.
डायरेक्टर आर बाल्कि की इंडस्ट्री में पहचान एक्सपेरिमेंटल डायरेक्टर के रूप में रही है. घूमर से पहले आर बाल्की की फिल्म चुप रिलीज हुई थी. फिल्म में सलमान दुलकर, सनी देओल और पूजा भट्ट अहम किरदार में थे. कहानी फिल्मी क्रिटिक के ऊपर बनाई गई थी. क्रिटिक के मानको पर खरी उतरने वाली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर उतनी सक्सेसफुल नहीं रही. अब इसका वर्ल्ड टीवी प्रीमियर हुआ. जिसके मौके पर आर बाल्की ने हमसे बातचीत की है.
हम टीवी के पावर को पहचानते हैं
आर बाल्की वर्ल्ड टीवी प्रीमियर के फायदे पर बात करते हुए बताते हैं, टीवी में प्रीमियर का फिल्मों को हमेशा से फायदा मिला है. देखिए भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी मनोरंजन के लिए टीवी पर ही निर्भर रहता है. हमारी आबादी जितनी है, उतने लोग थिएटर तो पहुंच ही नहीं पाते हैं. थिएटर जब फुल होते हैं, तब भी पर्सेंटेज बहुत ही लीमिटेड हैं. वहीं टेलीविजन की पहुंच बहुत ज्यादा है, हम टीवी के पावर को बखूबी जानते हैं. ऐसे में आपकी पहुंच घर-घर तक चली जाती है. मुझे यकीन है, फिल्म देखने के बाद लोग इसे इंजॉय करेंगे. ये ऐसी फिल्म है, जिसमें शाहरुख, सलमान जैसे सुपरस्टार नहीं हैं, कभी-कभी जब घर में हम ऐसी फिल्मों को डिस्कवर करते हैं, तो दर्शकों को भी हैरानी होती है कि उन्होंने एक अच्छी फिल्म मिस कर दी.
कुछ क्रिटिक्स ने इसे अपना हथियार बना लिया है
फिल्म चुप के बारे में बाल्कि बताते हैं, जब मैं फिल्म की कहानी लिख रहा था, तो मेरे लिए यह प्योर रोमांटिक फिल्म था. एक दर्द से भरे आदमी के रोमांस की कहानी है. गुरूदत्त भी अपनी निजी जिंदगी में कुछ ऐसे ही इंसान थे. जब एक आर्टिस्ट को क्रिटिसाइज किया जाता है, तो दो चीजें होने की संभावनाएं होती हैं. असर तो दोनों ही परस्थितियों में होता है, लेकिन कुछ लोग इसे बहुत पर्सनल ले लेते हैं, और बहुत गहराई में चले जाते हैं और कई बार खुद को नुकसान भी पहुंचाते हैं. वहीं कुछ लोग इन क्रिटिसिज्म को अपना हथियार बनाकर काम को और बेहतर बनाने की कोशिश में लग जाते हैं. कुछ ऐसे भी होते हैं, जो क्रिटिसिज्म को सुनकर गुस्सा हो जाते हैं. जब कोई आर्टिस्ट अपनी जिंदगी से प्रेरित होकर लोगों के बीच अपनी कला को शोकेस करता है और उसे सराहना नहीं मिलती है, तो फिर उसे ऐसा लगता है, मानों उनकी पूरी जिंदगी को क्रिटिसाइज किया जा रहा है. हमेशा कहा जाता है आर्टिस्ट सेंसिटिव हो जाते हैं लेकिन वो ये नहीं देखते कि लोग अपनी जजमेंट सुनाने में इतने मगन हो जाते हैं कि हमें समझ नहीं होती है कि किस कदर हम उनकी लाइफ को क्रिटिसाइज कर रहे हैं उसका असर किसी को पता नहीं होता है. चुप भी कुछ इस तरह की कहानी है.
चीनी कम में रिव्यूवर बहुत क्रूअल हो गए थे
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