
चंद्रपुर में 800 साल पुराना कारखाना मिला, जहां पत्थर को पिघलाकर बनाया जाता था लोहा
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चंद्रपुर के घंटाचौकी और लोहारा गांव के बीच प्रो. सुरेश चोपणे को 800 साल पुराना लोहे का एक कारखाना मिला है. उन्होंने अंदेशा जताया कि यह कारखाना 11/12वें दशक के राजा जगदेव परमार के समय का है. यहां लोहे के कई अवशेष भी मिले हैं जिसमें लोहे के औजार बनाने के साचे और कच्चे लोहे के टुकड़े शामिल हैं.
महाराष्ट्र के चंद्रपुर में 800 साल पुराना लोहे का कारखाना मिला है. यह कारखाना भूशास्त्र और पुरातत्व इतिहास के जानकर प्रो. सुरेश चोपणे को घंटाचौकी और लोहारा गांव के पास मिला है. उन्हें यहां कई अवशेष भी मिले हैं जिसमें लोहे के औजार बनाने के साचे और कच्चे लोहे के टुकड़े शामिल हैं.
प्रो. सुरेश चोपणे ने अंदेशा जताया कि लोहे के ये अवशेष 11/12वें दशक के राजा जगदेव परमार के समय के हैं. राजा परमार शिव भक्त थे और उन्होंने चंद्रपुर और गढ़चिरोली में कई मंदिर बनवाए हैं. इन्हीं मंदिरों के निर्माण के लिए लोहे का कारखाना बनाया गया होगा.
जहां ये लोहे कारखाना मिला है, उसके पास एक बहुत पुराना शिव मंदिर भी है जो कि राजा जगदेव परमार के ही शासनकाल में बनाया गया था. इसी के साथ उन्होंने मारखंडा मंदिर परिसर, सिद्धेश्वर मंदिर परिसर, गडचंदूर के मंदिर परिसर, जुगडद का मंदिर और भटाला में भोंडा महादेव मंदिर का भी निर्माण करवाया था.
इन सभी मंदिरों के निर्माण के लिए विभिन्न आकारों के पत्थरों को आकार देने के लिए लोहे की छन्नी, हथौड़ा और अन्य उपकरणों का उपयोग किया गया था. अंदेशा लगाया जा रहा है कि इसीलिए इस कारखाने का निर्माण करवाया गया होगा. दरअसल, प्राचीन काल में औजारों के लिए एक भट्टी के माध्यम से लौह खनिज युक्त पत्थर को पिघलाकर लोहा बनाया जाता था.
इसके लिए पहले लौह खनिज युक्त पत्थर मिलने के स्थान की खोज की जाती थी और फिर ऐसे पत्थरों को एक भट्ठी में उच्च तापमान पर गर्म करके तरल लोहा बनाया जाता था.
पुरातत्व विभाग को ध्यान देने की जरूरत प्रोफेसर सुरेश चोपणे के मुताबिक, यहां लोहा बनाया जाता था इसलिए इस गांव का नाम लोहारा पड़ा होगा. इस क्षेत्र की ऐतिहासिक और भौगोलिक चट्टानों के कई टुकड़े प्रो. सुरेश चोपणे के जीवाश्म संग्रहालय में रखे हुए हैं.

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