
घुटनों पर बैठे 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक, बंदूकें ताने खड़ी इंडियन आर्मी... पाकिस्तान की सबसे शर्मनाक शाम की कहानी!
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पाकिस्तान तीन-तीन बार भारत से आमने-सामने की जंग लड़ चुका है और तीनों बार पड़ोसी देश को मुंह की खानी पड़ी है. यहां तक 1971 की जंग में पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारतीय जांबाजों के सामने सरेंडर किया था और इस युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए थे, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ.
पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान लगातार भारत को हमले की गीदड़भभकी दे रहा है. यहां तक कि सिंधु नदी समझौता स्थगित करने से पाकिस्तान पूरी तरह बौखलाया हुआ है. वहां के नेता 'पानी नहीं बहेगा तो खून बहेगा' जैसे बयान देने से भी बाज नहीं आ रहे. लेकिन पाकिस्तान एक बार नहीं, तीन-तीन बार भारत से आमने-सामने की जंग में मुंह की खा चुका है. 1965, 1971 और 1999 के युद्ध में पाकिस्तान को भारतीय सेना ने धूल चटाई थी.
भारत ने किए पाकिस्तान के टुकड़े
इनमें सबसे खास 1971 की जंग रही, जब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का जन्म हुआ था. इस जंग में पाकिस्तानी सेना के जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी समेत 93000 हजार सैनिकों ने भारतीय जांबाजों के आगे घुटने टेक दिए थे. ऐसे में आज आपको उस जंग की कहानी बताते हैं कि जिसे पाकिस्तानी सेना के इतिहास की सबसे शर्मनाक शाम में गिना जाता है.
साल 1947 में भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना था. पाकिस्तान में भी मुख्य रूप से दो हिस्से थे पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान. मोहम्मद अली जिन्ना ने ढाका में ऐलान किया था कि पाकिस्तान के हर बाशिंदे को सिर्फ एक ही भाषा बोली चाहिए उर्दू और वह पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला बोलने वाले मुस्लिमों को अपने से छोटा मानते थे. इस तरह पाकिस्तान के भीतर ही उर्दू और बांग्ला बोलने वालों के बीच की खाई गहरी होती चली गई. पूर्वी पाकिस्तान का नेतृत्व करने वाले बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान और पश्चिमी पाकिस्तान के रहनुमा माने जाने वाले जिन्ना के बीच सियासी दांव पेच का दौर भी शुरू हो गया.
पूर्वी पाकिस्तान ने उठाई आजादी की मांग
पूर्वी पाकिस्तान में अलग देश की मांग के साथ मुक्ति वाहिनी के नेतृत्व में विद्रोह हुआ, तब इस बगावत को कुचलने के लिए जनरल टिक्का खान को ढाका रवाना कर दिया गया. भाषा के नाम पर उनके साथ लगातार अत्याचार किए गए थे. करीब दो दशक तक पूर्वी पाकिस्तान के लोग उत्पीड़न सहते रहे. लेकिन अपने शोषण से परेशान होकर 26 मार्च, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर उत्तराधिकार की मांग उठाई. भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके स्वतंत्रता संग्राम में पूर्वी पाकिस्तान का साथ दिया. उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से निकले लोगों को शरण देने का फैसला किया और लाखों लोग अपना देश छोड़कर भारत आ गए थे.

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