ग्लोबल वार्मिंग का क्राइम रेट से कनेक्शन! क्या गर्म इलाकों में रहने वाले लोग होते हैं खराब ड्राइवर?
AajTak
अध्ययन कहते हैं कि गर्म देशों में रहने वालों को ज्यादा गुस्सा आता है. ये गुस्सा सड़क पर भी दिखता है, खासकर जब वे ड्राइविंग कर रहे हों. लगभग दो महीने पहले जारी एक सर्वे में भारतीय ड्राइवरों को खराब गाड़ी चलाने वालों में रखा गया, जबकि ठंडे मुल्कों को ड्राइविंग के लिए अच्छा माना गया. तो क्या इसका मतलब ये है कि ठंडे इलाकों में रहने वालों को गाड़ी चलाते हुए गुस्सा नहीं आता!
शनिवार को दिल्ली में रोड रेज का दिल दहला देने वाला मामला आया, जिसमें गाड़ी किनारे करने पर हुए विवाद में दो युवकों ने एक डिलीवरी मैन की हत्या कर दी. शादीपुर गांव में हुई घटना के बाद से रोड रेज एक बार फिर चर्चा में है, यानी सड़क पर होने वाली मामूली घटनाओं के कारण आने वाला गुस्सा. गुस्से में लोग एक-दूसरे पर हमला कर तक बैठते हैं. इसमें वे हादसे भी शामिल हैं, जिसकी वजह कहीं न कहीं गुस्सा होता है, जैसे हाई स्पीडिंग या ओवरटेक करना. गर्मी में ये हादसे और बढ़ सकते हैं.
देशों की ड्राइविंग पर जारी हुआ डेटा लगभग दो महीने पहले एक ग्लोबल इंश्योरेंस कंपनी कंपेयर द मार्केट (Comparethemarket) ने डेटा जारी किया, जिसके मुताबिक, भारतीय सबसे खराब ड्राइविंग करने वालों में से हैं. फरवरी में जारी सर्वे में ये देखने की कोशिश थी कि ड्राइविंग के मामले में कौन से देश कहां खड़े हैं. इसके लिए 50 से ज्यादा देशों को लिया गया.
कौन सा देश, कहां खड़ा? थाइलैंड सबसे खराब ड्राइविंग वाले देशों में टॉप पर है, जिसके बाद पेरू, लेबनान और फिर भारत का नंबर आता है. मतलब इस सर्वे की मानें तो गाड़ी चलाने के मामले में हम भारतीय चौथे नंबर पर हैं. जापान में ड्राइविंग सबसे सेफ मानी जाती है. यहां लोग नियम भी मानते हैं, और सड़कें भी सुरक्षित हैं. इसके बाद नीदरलैंड, नॉर्वे और फिर एस्टॉनिया का नंबर है. एक और स्कैंडिनेवियाई देश स्वीडन 5वीं पोजिशन पर है. ये सभी देश आमतौर पर कम तापमान वाले देश हैं.
क्या मौसम का भी होता है असर? सेफ ड्राइविंग कंट्री का आंकड़ा निकालते हुए कई मानक लिए गए. इसमें गाड़ी चलाते हुए अल्कोहल लेना, सड़क खराब होना या नियमों की जानकारी न होना जैसे फैक्टर शामिल हैं. हालांकि एक बड़ी वजह इससे छूट गई, वो है किसी देश का मौसम. माना जाता है कि मौसम का भी गाड़ी चलाने वाले के मूड पर असर होता है. वैसे इसपर ताजा डेटा नहीं, लेकिन साल 2019 में यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया ने एक स्टडी में बताया कि मौसम का भी ट्रैफिक अपराधों यानी रोड रेज पर असर दिखता है.
क्या कहती है स्टडी? अध्ययन ऑस्ट्रेलियाई शहर पर्थ में हुआ, जिसमें जनवरी-फरवरी के दौरान का ट्रेंड नोटिस किया गया. ये दक्षिणी हेमिस्फेयर के सबसे गर्म महीने हैं, जिसमें तापमान 31 से 35 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. इसी दौरान वहां साल की सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं हुईं. इसमें गुस्से में आकर मारपीट भी थी, और हाई-स्पीडिंग भी.
सोचने की बात है कि जब 35 डिग्री सेल्सियस पर ड्राइवर आपा खो सकते हैं तो हमारे यहां तो पारा 45 पार चला जाता है. ऐसे में छोटी-मोटी बात भी ड्राइवर को गुस्सा दिला सकती है. इसपर कोई सीधा-सपाट सर्वे नहीं मिलता, जो बता सके कि गर्मियों में रोड रेज के केस कितने बढ़ जाते हैं, लेकिन टेंपरेचर से आक्रामकता का संबंध जरूर पता लगता है.