खुदकुशी... सुसाइड... आत्महत्या... 12 साल में 'कोटा फैक्ट्री' निगल चुकी है डॉक्टर इंजीनियर बनने का ख्वाब लेकर आए 181 घरों के चिराग
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इसी साल 28 अप्रैल को सुमित की मौत के साथ ही 2024 के पहले चार महीने में ही कोटा से आई मौत की ये नौंवी ख़बर है. जबकि पिछले 12 सालों में सुमित 181वां ऐसा छात्र है जिसे कोटा फैक्ट्री निगल चुकी है.
KOTA Suicide: अभी हाल ही में यूपीएससी के नतीजे आए थे. तमाम टॉपर्स की तस्वीरें अखबारों में छपी थीं. फिर कुछ दिन पहले ही इंजीनियर बनाने वाले जेईई के एग्जाम का भी नतीजा आया. तब भी कामयाब छात्रों की तस्वीरें अखबारों और टीवी पर थीं. लेकिन इस कामयाबी के पीछे नाकामी के खौफ की भी एक तस्वीर है. वो ऐसी तस्वीर है, जिसे 'कोटा फैक्ट्री' जब तक उगलती रहती है. अब इसी कोटा फैक्ट्री से एक और मुर्दा बच्चे की कहानी सामने आई है.
2013 में 13 2014 में 8 2015 में 17 2016 में 18 2017 में 14 2018 में 20 2019 में 18 2020 में 20 2021 में 0 (कोरोना की वजह से कोचिंग इंस्टिट्यूट बंद थे) 2022 में 15 2023 में 29 2024 में अब तक 8
और 28 अप्रैल को सुमित की मौत के साथ ही 2024 के पहले चार महीने में ही कोटा से आई मौत की ये नौंवी ख़बर है. जबकि पिछले 12 सालों में सुमित 181वां ऐसा छात्र है जिसे कोटा फैक्ट्री निगल चुकी है.
ख्वाब बेचने वाला शहर मुर्दा बचपन की कीमत पर आबाद ये आंकडे उस कोटा शहर के हैं, जो बचपन को मुंहमांगी कीमत और अपनी शर्तों पर डॉक्टर और इंजीनियर बनाने का ख्वाब बेचता है. इस ख्वाब की कोई गारंटी नहीं होती. लेकिन मासूम बचपन को कामयाब जिंदगी देने की ख्वाहिश में तमाम मां-बाप ना सिर्फ बिना गारंटी वाले इस ख्वाब को खरीदने की होड में लगे हैं, बल्कि जाने अनजाने वो अपने बच्चों के बचपन को कामयाब जिंदगी की बजाय मुर्दा बचपन की तरफ धकेलने का काम कर रहे हैं. ये डरावने आंकडें बस उसकी बानगी भर हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि जंदगी एक इम्तेहान है, लेकिन कोटा जैसी फैक्टरी अगर इम्तेहान को ही जिंदगी बनाने लगे, तो ये आंकडे कम होने की बजाय आने वाले वक्त में बढ़ते रहेंगे. अब ये मां-बाप को तय करना है कि वो अपने बच्चों को क्या देना चाहते हैं. खुशहाल और कामयाब जिंदगी या फिर मुर्दा बचपन.
एग्जाम से पहले ही हार गया सुमित 20 साल का सुमित हरियाणा के रोहतक का रहने वाला था. आज यानि 28 अप्रैल को जब उसकी मौत की खबर बन रही है तब कायदे से आज ही के दिन पूरे एक साल बाद सुमित को कोटा से अपने घर लौटना था. पिछले एक साल से कोटा में रहकर सुमित ने डॉक्टर बनने की जो तैयारी की थी उसके इम्तिहान की घड़ी आ चुकी थी. 5 मई को उसे नीट के एग्जाम में बैठना था. इम्तिहान पास करते ही वो डॉक्टर भी बन जाता. लेकिन सुमित को शायद इम्तिहान से पहले ही अपना नतीजा पता था. और बस इसी नतीजे के खौफ से हार कर संडे की शाम कोटा के अपने हॉस्टल में वो फंदे से झूल गया. और इस तरह जिंदा सुमित का नाम भी मुर्दा बचपन में शुमार हो गया.
झूठे दावे और नाकाम प्रशासन पर सुमित की मौत के बाद की वीडियो और तस्वीरें एक बार फिर कोटा प्रशासन पर गंभीर उंगलियां उठा रही हैं. हर मुर्दा बचपन के बाद यही प्रशासन चीख-चीख कर कहता रहा है. कि उसने शहर में ऐसे इंतजाम किये हैं कि अब कोई भी बच्चा अपने कमरे में फंदा लगा ही नहीं सकता. हर हॉस्टल, हर गेस्ट हाउस में एंटी हैंगिंग डिवाइस लगाए गए हैं. सीलिंग फैन के ऐसे डिजाइन तैयार किए गए हैं कि ना उसमें कोई फंदा फिट कर सकता है और ना ही झूल सकता है. लेकिन ये उसी कोटा की उत्तम रेजिडेंसी का वो कमरा है जहां सुमित ने मौत को गले लगाया. यहां पंखा और फंदा दोनों साफ दिख रहा है. ना पंखे का डिजाइन अलग है ना ही कोई एंटी हैंगिंग डिवाइस नजर आ रहा है. साफ है कि कोटा प्रशासन हर मुर्दा बचपन के बाद जागता है और फिर खुद मुर्दा बनकर सो जाता है.
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