'कोहरा ' रिव्यू: क्राइम थ्रिलर के भेष में, परिवार-समाज के टूटते तानेबाने को दिखाता एक बेहतरीन सोशल ड्रामा
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नेटफ्लिक्स पर एक नया शो आया है 'कोहरा'. शो की कहानी एक मर्डर केस से शुरू होती है. लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, ये विरासत में मिली शान के कोहरे में धुंधले पड़ते समाज की कहानी बन जाता है. 'कोहरा' देखने के बाद इसपर देर तक बात करने का मन करता है, और ये एक अच्छे शो की सबसे बड़ी निशानी है.
कोई काम पहले सौ बार किया जा चुका हो, फिर भी उसे और बेहतर क्वालिटी के साथ एक सौ एकवीं बार करने का स्कोप हमेशा बचा रहता है. नेटफ्लिक्स का नया शो 'कोहरा', क्राइम की कहानी के जरिए समाज की परतों को उघाड़कर देखने की वही एक सौ एकवीं कोशिश है. एक सामाजिक तानेबाने को सिनेमाई भाषा में बारीकी से दर्ज करने वाले 'कोहरा' को, अभी तक इस साल का सबसे बेहतरीन ओटीटी शो कहा जा सकता है.
एक मर्डर मिस्ट्री के जरिए, किरदारों के माहौल-समाज को समझने की कोशिशें तमाम शोज और फिल्मों में होती रही है. लेकिन 'कोहरा' इस काम को, बहुत सधे हाथों वाले डॉक्टर की बारीकी से करता है. शो की कास्टिंग इतनी बेहतरीन है कि स्क्रीन पर दिखने वाले चेहरे, एक्टर्स लगते ही नहीं. बल्कि ऐसा लगता है कि ये कहानी में दिख रही रियलिटी को खुद जी रहे लोग हैं.
कास्ट को लीड कर रहे सुविंदर विक्की ने ऐसा काम किया है जिसे इंडियन ओटीटी स्पेस की सबसे बेहतरीन अच्तिंत परफॉरमेंस में गिना जाता रहेगा. उनके साथ वरुण सोबती वो जोड़ी बनाते हैं जो स्क्रीन पर आपको बांधे रखती है. आइए बताते हैं 'कोहरा' में और क्या है खास...
'कोहरा' का प्लॉट खेत में पड़ी मिली एक डेड बॉडी से शो की कहानी शुरू होती है. पता लगता है कि ये एक NRI लड़के, पॉल की लाश है, जो शादी करने इंडिया आया था. दो दिन पहले ही उसकी सगाई हुई है. जांच आगे बढ़ने पर पता चलता है कि पॉल अपने विदेशी दोस्त लियाम के साथ रात को निकला था. एक कि लाश मिल चुकी है मगर दूसरा अभी भी गायब है.
पंजाब पुलिस के दो ऑफिसर बलबीर सिंह (सुविंदर विक्की) और अमरपाल गरुंडी (वरुण सोबती) इस केस को सुलझाने में लगे हैं. जांच आगे बढ़ती है तो पॉल के परिवार और उसकी मंगेतर की लाइफ के राज बाहर आने लगते हैं. दूसरी तरफ खुद बलबीर और अमरदीप की लाइफ में अपने हिस्से की उलझनें हैं. बलबीर की बेटी अपने पति से अलग होना चाहती है और अपने मायके में ही रहती है. अमरदीप अपने भाई और भाभी के साथ रहता है. भाभी के साथ उसकी इक्वेशन अलग है. इसमें पंगा तब पड़ता है जब अमरदीप खुद शादी करना चाहता है.
पॉल और लियाम का केस, और दोनों पुलिस वालों की पर्सनल लाइफ में कहानी जितना अन्दर जाती है, सारी धुंध उतनी ही साफ़ होती जाती है. 'कोहरा' एक ऐसे पॉइंट पर पहुंच जाती है जहां लगता है कि केस से जुड़ा हर किरदार एक पोटेंशियल हत्यारा है. लेकिन इस शो का सबसे बड़ा मजा यही है कि जितना आपको स्क्रीन पर दिख रहा है, मामला सिर्फ उतना ही नहीं है. जब क्लाइमेक्स में पूरी कहानी सुलझती है, तो आप हैरान होने से ज्यादा निराश रह जाते हैं. और ये निराशा उस सोशल सेटअप से निकलती है, जहां 'कोहरा' की पूरी कहानी बुनी गई है.
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