कांग्रेस पार्टी में मची भगदड़ के पीछे की ये है असली कहानी
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सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना. कांंग्रेस पार्टी में कार्यकर्ताओँ और नेताओं की आंखों में सपने भरने वाले नेतृत्व की कमी के चलते हर रोज कोई न कोई महत्वपूर्ण नेता पार्टी छोड़ रहा है. इन 6 पॉ़इंट्स पर कांग्रेस को जरूर गौर करना चाहिए.
24 घंटे के अंदर कांग्रेस के 3 कद्दावर लोगों ने पार्टी छोड़ दी है. बॉक्सर विजयेंद्र सिंह, पूर्व सांसद संजय निरूपम और प्रवक्ता गौरव वल्लभ का पार्टी छोड़ना पार्टी के लिए बहुत बड़ा सेटबैक है. ऐन चुनाव के मौके पर इन नेताओं का पार्टी से मुंह मोड़ना पार्टी के नेतृत्व की कमजोरियों को उजागर करता है. गौरव वल्लभ और संजय निरूपम दोनों ने पार्टी के उन अंतर्विरोधों की चर्चा की है जिसके चलते उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी . हालांकि दोनों ने कोई नई बात नहीं बताई है. कांग्रेस से जाने वाले कई सालों से वही बात दुहरा रहे हैं पर कोई एक्शन होता नहीं दिखता है. अब तो सोशल मीडिया में लोग यह भी कहने लगे हैं कि इस तरह तो कांग्रेस में केवल गांधी परिवार ही बचेगा.आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण हैं जिसके चलते कांग्रेस खाली होती जा रही है.
1-पार्टी में गांधी परिवार की ही चलती है, दूसरे केलल मुगालता पालते हैं
पार्टी में गांधी परिवार के अलावा किसी की नहीं चलती है. अगर आप गांधी परिवार के गुड बुक में जगह बनाने में असफल हैं तो आपकी तरक्की कांग्रेस में संभव नहीं है. उससे भी बड़ी बात यह है कि अगर गांधी परिवार का विश्वास पात्र बनकर आप अध्यक्ष भी बन जाते हैं तो भी आपकी इज्जत कौड़ी के ही मोल है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को धक्का देते विडियो इसकी ही गवाही देते हैं. बुधवार को राहुल गांधी के पर्चा दाखिले से भी जरूरी काम दिल्ली में खरगे कर रहे थे पर उसे कोई इम्पॉर्टेंस नहीं मिला . क्योंकि गांधी परिवार का कोई भी उस आयोजन में नहीं था.
संजय निरुपम कहते हैं कि गांधी परिवार में 5 पावर सेंटर हैं. जिसमें 3 गांधी फैमिली के ही हैं. सोनिया गांधी , राहुल गांधी और प्रियंका गांधी . 2 पावर सेंटर गांधी परिवार के बाहर के हैं. जिसमें मल्लिकार्जुन खरगे और बी श्रीनिवास का उन्होंने नाम लिया है. राहुल और प्रियंका की लॉबी के चलते कई अच्छे नेताओं का सत्यानाश होते जनता ने देखा है. पंजाब में अमरिंदर सिंह, नवजोत सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी की कहानी सबको याद ही है.यही हाल राजस्थान में भी हुआ. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के झगड़ों का अंत न होना पार्टी के कई पावर सेंटर का ही नतीजा था. गांधी परिवार से अलग वाले पावर सेंटर तो सिर्फ मुगालते में रहते हैं. जब भ्रम टूटता है तो पार्टी छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है.
2-राहुल गांधी के अलावा किसी का भविष्य नहीं, प्रियंका और वरूण जैसों के लिए भी जगह नहीं
कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी चाहे कितनी बार भी फेल हो जाएं नेतृत्व उनके पास ही रहेगा. ऐसा नहीं है कि पार्टी में नेताओं की कमी है. अगर गांधी परिवार के अंदर के लोगों को ही आगे बढ़ाना हो तो भी कई लोग हैं. प्रियंका गांधी को आगे बढ़ाने के नाम पर पार्टी को सांप सूंघ जाता है. कहा जाता है कि सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना. लगातार राहुल की असफलता को देखते हुए प्रियंका को सामने लाया जा सकता है. कम से कम कुछ दिन के लिए एक उम्मीद तो जगती. कार्यकर्ताओं और नेताओं को जब कोई उम्मीद नहीं दिखेगी तो अपने कैरियर की मौत होते देख दूसरे पार्टियों में जाने के लिए लोग मचलेंगे ही. यूपी में अगर रायबरेली और अमेठी से प्रियंका गांधी और वरुण गांधी को टिकट दिया गया होता तो कम से कम 2 सीट तो कांग्रेस को मिलती ही मिलती. यहीं नहीं आसपास की कुछ और सीटों पर पार्टी के फेवर में माहौल बनता .वरुण गांधी तो बीजेपी में रहते हुए नरेंद्र मोदी को टार्गेट करते रहे इसी उम्मीद में कि कांग्रेस उन्हें जरूर जगह देगी. पर ऐसा संभव नहीं हुआ. इन नेताओं को जीतते देखकर कार्यकर्ताओं में पार्टी को लेकर एक उम्मीद जगती. पार्टी कार्यकर्ताओं के सपनों का मर जाना सबसे खतरनाक है.
एग्जिट पोल का अनुमान बताता है कि बीजेपी और महायुति को जितनी सीटों पर जीतने की उम्मीद थी, वो पूरी होती नहीं दिख रही है. एग्जिट पोल में महाराष्ट्र की 48 सीटों में से बीजेपी को 20-22, कांग्रेस को 3-4, शिवसेना (ठाकरे गुट) को 9-11, शिवसेना (शिंदे गुट) को 8-10, एनसीपी (शरद पवार) को 4-5 और एनसीपी (अजित पवार) को 1-2 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है.
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