
'एक बेटा सपा में, एक बीजेपी में और पिता कांग्रेस का शहर अध्यक्ष', AICC के मंच पर दिया गया गजब का उदाहरण
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अहमदाबाद में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में यूपी के नेता आलोक मिश्रा ने संगठन की नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं. मिश्रा ने कहा, कांग्रेस के एक शहर अध्यक्ष हैं, उनका एक बेटा सपा में है और एक बेटा बीजेपी में है. उन्होंने पूछा, क्या वो नेता शहर अध्यक्ष होने लायक है?
गुजरात में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया जा रहा है. बुधवार को दूसरे दिन प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान AICC सदस्यों ने खुले मंच से संगठन की खामियों पर बात की और अपना पक्ष रखा. उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेता आलोक मिश्रा ने संगठन में नियुक्ति पर सवाल खड़े कर दिए. आलोक ने दावा किया कि पार्टी ने एक ऐसा शहर अध्यक्ष बनाया, जिसका एक बेटा सपा में तो दूसरा बीजेपी में काम करता है. आलोक जब मंच पर गरज रहे थे, तब पार्टी हाईकमान खुद को ताली बजाने से नहीं रोक पाया.
कांग्रेस नेता आलोक मिश्रा ने कहा, एक वो कार्यकर्ता जो साल 1982 से कांग्रेस में है. आज कांग्रेस की दुहाई देता है और आपसे आह्वान करने आया है कि हम लोग बीजेपी से बाद में लड़ते हैं, पहले कांग्रेसी आपस में लड़ते हैं. एक बार तय कर लीजिए कि कोई भी फैसला, जो ऊपर से तय होकर आएगा, उसे हम सहर्ष स्वीकार करेंगे. तब तक आपस में नहीं लड़ेंगे, जब तक कांग्रेस पार्टी को सत्ता में नहीं ले आते हैं. पार्टी को सत्ता में लाकर ही दम लेंगे.
'क्या वो शहर अध्यक्ष होने लायक है?'
उन्होंने आगे कहा, राहुलजी और खड़गे जी, मैं आपसे कहने आया हूं कि आप बीजेपी को हटाना चाहते हैं और कांग्रेस के अंदर जो बीजेपी के लोग हैं, उन्हें हटाना चाहते हैं तो मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि अगर कोई शहर अध्यक्ष है, जिसका एक लड़का सपा में हो और एक लड़का बीजेपी में हो... क्या वो शहर अध्यक्ष होने लायक है? खड़गेजी, मैं आपसे पूछता हूं कि एक व्यक्ति जिसका एक लड़का समाजवादी पार्टी में है और दूसरा लड़का भारतीय जनता पार्टी में है, क्या वो शहर अध्यक्ष होने लायक है. अगर वो शहर अध्यक्ष होने लायक है तो हम भी आपको स्वीकार करते हैं. लेकिन एक बात और आपसे कहना चाहते हैं. आपने मुझे मौका दिया.
'शहर अध्यक्ष को नहीं लड़ना चाहिए चुनाव'
आलोक मिश्रा ने कहा, कानपुर में हमने 4 लाख 22 हजार वोट हासिल किए. ये मौका मुझे मिला, जो इतिहास में सन 1947 से किसी को नहीं मिला. मैं आपसे अनुरोध करने आया हूं कि शहर अध्यक्षों को जो आपने सत्ता दी है, हम उसे स्वीकार करते हैं. लेकिन उसके साथ-साथ ये भी फैसला कर लीजिए कि शहर या जिला अध्यक्ष जो भी होगा, वो चुनाव के लिए आवेदन नहीं करेगा. वो सिर्फ संगठन का काम करेगा. ये भी तय कर लीजिए. वरना हर शहर अध्यक्ष और हर जिला अध्यक्ष खुद चुनाव का कैंडिडेट बन जाएगा.

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