
आस्था की ऐसी ताकत, जर्मनी से जितेश को खींच लाई महाकुंभ, शेयर किया अनुभव
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कहते हैं इंसान चाहे कितनी भी दूर चला जाए, उसकी जड़ें कभी उससे अलग नहीं होतीं. वह अपनी मिट्टी और संस्कृति से हमेशा जुड़ा रहता है. इस बार के महाकुंभ 2025 में प्रयागराज ने इस इमोशन को बखूबी देखा जा रहा है.
कहते हैं इंसान चाहे कितनी भी दूर चला जाए, उसकी जड़ें कभी उससे अलग नहीं होतीं. वह अपनी मिट्टी और संस्कृति से हमेशा जुड़ा रहता है. इस बार के महाकुंभ 2025 में प्रयागराज ने इस इमोशन को बखूबी देखा जा रहा है.
महाकुंभ सिर्फ आस्था का पर्व नहीं है, यह एक ऐसा संगम है जो दुनियाभर के लोगों को अपनी ओर खींचता है. यहां न केवल भारतीय, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोग भी अपने वतन की ओर खिंचे चले आते हैं. इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ा है, जो इस बार के महाकुंभ में अपनी आस्था को महसूस करने आया है. मैसूर के मूल निवासी जितेश प्रभाकर, जो अब जर्मनी में रहते हैं, अपनी पत्नी सास्किया नॉफ और बेटे आदित्य के साथ महाकुंभ में पहुंचे.
आस्था खींच लाई जर्मनी से प्रयागराज
विदेशी धरती पर रहते हुए भी जितेश का भारतीय संस्कृति और आध्यात्म से गहरा जुड़ाव देखने को मिला. जितेश ने महाकुंभ में भागीदारी के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं भारत में हूं या विदेश में. सबसे जरूरी है अपनी जड़ों से जुड़े रहना. मैं रोजाना योग करता हूं और यह सिखाता है कि व्यक्ति को हमेशा अपने भीतर की यात्रा करना चाहिए.
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