आरसीपी सिंहः दिल्ली दरबार में जो हुआ मजबूत, नीतीश कुमार ने कतर दिए उसके पर
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बिहार में पांच राज्यसभा सीटों पर (Bihar Rajya Sabha election) चुनाव हो रहे हैं. जेडीयू को राज्यसभा की मिलने वाले एकलौती सीट के लिए नीतीश कुमार ने केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के बजाय खीरू महतो को प्रत्याशी बनाया है. इससे आरसीपी को सियासी तौर पर बड़ा झटका लगा है. हालांकि, जेडीयू में पहली बार नहीं है जब किसी बड़े नेता पर नीतीश ने राजनीतिक अंकुश लगाया बल्कि शरद यादव से लेकर दिग्विजय सिंह, अरुण कुमार जैसे नेताओं की लंबी फेहरिश्त है.
राज्यसभा चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेडीयू की अपनी एकलौती सीट के लिए केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के बजाय खीरू महतो को प्रत्याशी बनाया है. आरसीपी सिंह एक समय नतीश के बाद जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखते थे. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन फिर भी तीसरी बार उन्हें राज्यसभा का मौका नहीं मिल सका. हालांकि, जेडीयू में पहली बार नहीं है जब किसी बड़े नेता के पर कतरे दिए गए हों बल्कि दिल्ली की सियासत में पार्टी के जिस नेता ने भी खुद को मजबूत करने की कोशिश की है, उसे नीतीश कुमार ने 'रास्ता' दिखा दिया.
आरसीपी सिंह ने नौकरशाही के रास्ते से नीतीश कुमार के भरोसे सियासत में एंट्री की थी. आरसीपी और नीतीश कुमार एक ही जिले नालंदा और एक ही जाती कुर्मी समुदाय से आते हैं. ऐसे में दोनों ही नेताओं की दोस्ती गहरी होती गई और आरसीपी देखते ही देखते नीतीश कुमार के आंख और कान बन गए. 2010 में उन्होंने आईएएस से इस्तीफा दिया और नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य सभा भेजा. 2016 में वे पार्टी की ओर से दोबारा राज्यसभा पहुंचे और शरद यादव की जगह राज्यसभा में पार्टी के नेता भी मनोनीत किए गए.
नीतीश कुमार की मनमर्जी पर आरसीपी का सियासी भविष्य संवरता गया. नीतीश ने जेडीयू की कमान छोड़ी तो आरसपी ने थामा, लेकिन जैसे ही मोदी कैबिनेट में शामिल होकर दिल्ली की सियासत में खुद को आरसीपी ने स्थापित करने की कोशिश की, वैसे ही नीतीश कुमार ने सबक सिखाने का ठान लिया. हालांकि, नीतीश ये बात समझ रहे थे कि आरसीपी कभी जनाधार वाले नेता नहीं हो सकते, जो नीतीश कुमार को उस तरह की चुनौती कभी नहीं देते जैसा कोई जनाधार वाला नेता दे सकता था.
दो दशक की दोस्ती में कैसे आई खटास
नीतीश-आरसीपी की दो दशक की दोस्ती में खटास उस समय आया जब जेडीयू ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में दो सीटों की मांग रखी थी, लेकिन आरसीपी कैबिनेट शामिल होने की जल्दबाजी में एक ही मंत्री पद से मान गए. दिल्ली की राजनीति में आरसीपी ने अपनी अलग छवि बनाने की कवायद की, जिसके लिए जातीय जनगणना के मुद्द पर पार्टी के स्टैंड से दूरी रखी जबकि नीतीश कुमार दशकों से इसके प्रबल समर्थक रहे. इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को तीसरी बार राज्यसभा न भेजकर अंकुश लगाएंगे.
वहीं, रविवार को जब जेडीयू की ओर से उम्मीदवार के नाम का ऐलान किया गया तो आरसीपी सिंह के बदले खीरू महतो का नाम सामने आया. खीरू महतो समता पार्टी के काल से ही नीतीश कुमार से जुड़े हुए हैं. इसके पहले भी पार्टी ने कर्नाटक के अनिल हेगड़े को राज्यसभा के लिए नामित किया था. नीतीश कुमार ने अपने इस फैसले के बाद कोई औपचारिक प्रतिक्रिया तो नहीं दी, लेकिन असल मकसद आरसीपी सिंह को सियासी अहमियत दिखाना था.
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