Thank You For Coming Review: फैंटसी...इंटीमेसी... चरमसुख की बात, लेकिन देगी सिरदर्दी साथ
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Thank You For Coming Review: भूमि पेडनेकर की इस फिल्म से महिला दर्शकों को काफी उम्मीदें थीं. फिल्म अपनी सब्जेक्ट से काफी डायवर्ट नजर आता है. पढ़ें ये रिव्यू...
बॉलीवुड के लिए सेक्स कॉमिडी जॉनर हमेशा से अनएक्सप्लोर रहा है. हालांकि जिन्होंने भी इस जॉनर के नाम पर फिल्में बनाई भी हैं, उन्होंने भी सतही लेवल पर फिल्म को परोसा है. खैर रिया कपूर ने भी इस जॉनर पर फिल्म बनाने की सोची और अलग नजरिये से इसे दिखाने की ठानी. अमूमन लड़कियों को ऑब्जेक्टिफाई करती सेक्स कॉमिडी से हटकर रिया की यह फिल्म महिलाओं के ऑर्गेज्म पर बात करती है.
कहानी
पुरानी कहानियों में लड़कियों के बीच यह कहावत बहुत मशहूर है कि आप अपने असली प्रिंस से मिलने से पहले कई मेंढकों को किस करना पड़ता है. दिल्ली की कनिका कपूर को भी अपने प्रिंस की तलाश है, जो न केवल रोमांटिक हो बल्कि उन्हें बेड पर वो प्लेजर दे पाए, जिससे वो वंचित रही हैं. दरअसल अपने तीसवें जन्मदिन में कनिका बेस्ट फ्रेंड्स को कन्फ्रंट करती हैं कि उन्हें कभी ऑर्गेज्म नहीं हुआ है. इस बीच कनिका अपनी उम्र के साथ बॉयफ्रेंड के साथ-साथ 60 साल के उम्रदराज तक के प्रोफेसर के रूप में प्यार और ऑर्गेज्म को ढूंढने की नाकाम कोशिश करती है. हालांकि अपनी मनोहर कहानी वाली दुनिया से निकलकर जब कनिका शादी के बंधन में बंधने की ठानती है, तो उस वक्त भी सगाई की रात ओवरड्रंक कनिका किसी और संग सेक्स कर बैठती हैं, जिसमें वो पहली बार प्लेजर तक पहुंच पाई थी. नशे में धुत्त कनिका को पता नहीं था कि आखिर उसकी इस खुशी के पीछे किसका हाथ, बस उसी तलाश है इस फिल्म की कहानी का सार.
डायरेक्शन करण बुलानी ने इस फिल्म के जरिए बेशक एक बेहतरीन सब्जेक्ट को हाइलाइट किया है, लेकिन कहानी को लेकर उनका विजन बिलकुल भी समझ नहीं आता है. क्लैरिटी न होने की वजह फर्स्ट हाफ से ही कहानी उलझी हुई नजर आती है. ट्रेलर रिलीज के दौरान जिस तरह से महिलाओं के ऑर्गेज्म, उनकी फ्रीडम, चॉइसेस पर बातें कही गई थी, तो एक बेहतरीन कहानी लिए बोल्ड फिल्म की उम्मीद जगी थी, लेकिन फिल्म शुरू होने के पंद्रह मिनट के बाद से ही आप क्लाइमैक्स तक कहानी का सार ढूंढने की कोशिश करते रह जाते हैं. पहले हाफ तक समझ ही नहीं आता है कि कनिका की प्रॉब्लम क्या है? क्या वो ऑर्गेज्म की तलाश में हैं या फिर उन्हें अपनी कहानियों का हीरो वीर प्रताप सिंह की चाह है? इस फिल्म का दूसरा ड्रॉ बैक फिल्मों में बिना वजह बोले गए बेतुके डायलॉग्स भी हैं. सावित्री बनो तो बोर, सावित्री बनो तो होर, वीर जारा वाला प्यार और सनी लियोन वाली बौछार.. मतलब इनका कोई सिर पैर नहीं समझ आ रहा था. उल्टा ये एक सेंसेटिव टॉपिक को और फूहड़ बनाने में मदद करते नजर आते हैं. ओवरऑल फिल्म पूरी दिशाहीन सी लगती है. एक अच्छे सब्जेक्ट को कैसे बर्बाद किया जा सकता है, इसका सटिक उदाहरण फिल्म देती है.
एक्टिंग भूमि पेडनेकर एक बेहतरीन अदाकारा हैं. उन्होंने अपने करियर में कई याद रखने वाले किरदार निभाए हैं, लेकिन इस फिल्म में भूमि बहुत ही मिसफिट सी लगती हैं. खासकर डायलॉग्स बोलते वक्त भूमि की ओवरएक्टिंग पूरी निखर कर स्क्रीन पर नजर आती है. रुशी कालरा के रूप में शहनाज महज चार बार स्क्रीन पर नजर आती हैं. कुशा कपिला ने जिस तरह से प्रमोशन में हिस्सा लिया था, वो प्रमोशन में ज्यादा फिल्म में कम दिखती हैं. फिल्म में उनके लिए करने को कुछ खास नहीं था. डॉली सिंह और शिबानी बेदी का काम बेहतरीन रहा. दोनों ने ही अपनी काम को सहजता से निभाया है. सुशांत दिवगिकर का ट्रैक इस फिल्म में एकमात्र इंट्रेस्टिंग पॉइंट रहा और सुशांत का काम अच्छा रहा. नताशा रस्तोगी और डॉली आहलूवालिया की मौजूदगी फिल्म में फ्रेशनेस जगाती है.
क्यों देखें किसी तरह का प्रेशर नहीं है कि आप फिल्म देखें. आप इसके ओटीटी पर आने तक का इंतजार कर सकते हैं.