IPC Section 91: कुछ कार्य बिना किसी नुकसान के भी होते हैं अपराध, यही बताती है धारा 91
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आईपीसी (IPC) की धारा 91 (Section 91) में बताया गया कि ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो अपने आप में बिना किसी नुकसान के अपराध है. तो आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 91 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धाराएं अपराध, उनकी सजा और कई पदों की शक्तियों को भी परिभाषित करती है. साथ ही उनके बारे में जानकारी भी देती हैं. इसी प्रकार से आईपीसी (IPC) की धारा 91 (Section 91) में बताया गया कि ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो अपने आप में बिना किसी नुकसान के अपराध है. तो आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 91 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 91 (Indian Penal Code Section 91) भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 91 (Section 91) में ऐसे कार्यों का अपवर्जन (Exclusion of works) परिभाषित (Define) किया गया है, जो किए जाने पर अपने आप में बिना किसी नुकसान (Without any damage) के भी अपराध (Offence) माने जाते हैं. IPC की धारा 91 के अनुसार, धारा 87, 88 और 89 के अपवादों का विस्तार (Extension of exceptions) उन कार्यों पर नहीं है जो उस अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध (self offense) हैं जो उस व्यक्ति को, जो सम्मति देता है या जिसकी ओर से सम्मति (Consent) दी जाती है, उन कार्यों से कारित हो, या कारित किए जाने का आशय (Meaning) हो, या कारित होने की संभाव्यता (Feasibility) ज्ञात हो.
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क्या होती है आईपीसी (IPC) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.
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