India Today Health Conclave: 'पीपीपी मोड से बदल सकती है हेल्थ सेक्टर की तस्वीर', डॉ. गुलेरिया और बाली ने गिनाए उदाहरण
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इंडिया टुडे हेल्थ कॉन्क्लेव में 'पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप इन हेल्थकेयर' पर आयोजित सत्र में एम्स के पूर्व निदेशक और मेदांता मेडिकल एजुकेशन के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया तथा नारायाणा ग्रुप के नवनीत बाली ने हिस्सा लिया और बताया कि कैसे पीपीपी के जरिए स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार लाया जा सकता है.
इंडिया टुडे हेल्थ कॉन्क्लेव में आयोजित एक अहम सत्र 'पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप इन हेल्थकेयर' में एम्स के पूर्व निदेशक और मेदांता मेडिकल एजुकेशन के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया और नारायणा ग्रुप के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट एंड ग्रुप हेड नवनीत बाली ने हिस्सा लिया. दोनों ही दिग्गजों ने बताया कि कैसे पीपीपी मोड से स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार आ सकता है और इसे बेहतर किया जा सकता है.
डॉ. गुलेरिया ने दिया कोविड के दौर का उदाहरण डॉ. गुलेरिया ने कहा, 'कोविड का समय बहुत टफ समय था, विशेषकर हेल्थ प्रोफेशनल्स के लिए. लेकिन पब्लिक पार्टनरशिप के प्वॉइंट ऑफ व्यू से हमने कई चीजें सीखीं. अगर रिसर्च प्वॉइंट ऑफ व्यू से देखें तो कोविड 19 से पहले हम अपनी वैक्सीन Research नहीं करते थे, बनाते नहीं थे सिर्फ मैन्युफैक्चरर करते थे और उसमें रिसर्च नहीं होती थी. कोविड के दौरान हमने देखा कि हम रिसर्च के क्षेत्र में एक वैक्सीन हब बन सकते हैं.'
उन्होंने कहा, 'आपने देखा होगा होगा कि वायरस मिला उस पर Research हुई फिर विभिन्न प्रकार की वैक्सीन बनीं. एक तो Research प्वॉइंट ऑफ व्यू और मेकिंग इंडिया सेल्फ सफीशिएंट, चाहे वो टेस्टिंग हो या वैक्सीनेशन पब्लिक पार्टनरशिप ने एक अहम भूमिका अदा की. दूसरा आपने देखा होगा जो कोविन ऐप वो बहुत कारगार साबित हुआ, यहां तक कि विदेशों से भी बेहतर है. हमने उससे भी बहुत कुछ सीखी. तीसरी चीज हमने देखा कि हम कैसे टेली कंसल्टेशन से कैसे मरीजों को देख सकते हैं. कोविड के दौरान लोगों और सरकार के सहयोग से कई जगहों पर होम आइशोलेशन सफल रहा है. कोविड का दौर कई मामलों में अहम भी रहा. '
नवनीत बाली ने बताई समस्या की जड़
इसी सत्र में शिरकत करते हुए नारायणा गुप के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट एंड ग्रुप हेड नवनीत बाली ने कहा, '140 करोड़ की जनता, उसमें से 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें कोई इंश्योरेंस कवर नहीं करता है, या कोई सीजीएचएस या ईएसआई कवर नहीं करता है.एक भारतीय जब अस्पताल जाता है तो वह अपनी जेब से 50 से 60 फीसदी पे करता है जबकि विश्व का औसत तकरीबन 18 फीसदी है. ये हमारी समस्या है.'
नवनीत बाली ने कुछ आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, 'आज की डेट में भारत में 7 लाख बेड हैं और नीति आयोग के मुताबिक, 30 फीसदी और बेड चाहिए यानि 10 लाख बेड. इमेजिन कीजिए कि 10 लाख बेड हमारे पास हैं और उनमें से आधे लोग यानि पांच लाख लोग ऐसे हैं जो अपनी जेब से पैसा खर्च करते हैं हैं यानि कोई पैनल उस पर पैसे खर्च नहीं करता है और एक एवरेज रेवन्यू होता है, उसको कहते हैं कि हर दिन का 25 हजार रुपया ले लेते हैं. इसका मतलब हर एक भारतीय अपनी जेब से 120 करोड़ रुपये हर दिन खर्च करता है, यही हमारी समस्या है.'
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