
140 वर्षों का इतिहास, भारतीयों की पहली घुड़दौड़ का गवाह... जानें मुंबई के महालक्ष्मी रेसकोर्स की पूरी कहानी
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महालक्ष्मी रेसकोर्स की जमीन पर 19 साल की लीज साल 2013 में समाप्त हो गई. तभी से मुंबई के इस रेसकोर्स का अस्तित्व खतरे में है. हाल ही में बीएमसी और महाराष्ट्र सरकार ने क्षेत्र में एक थीम पार्क स्थापित करने और रेसकोर्स को ट्रांसफर करने की योजना को नवीनीकृत किया. बीएमसी के इस कदम की RWITC के एक वर्ग, राजनेताओं और कार्यकर्ताओं से कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
महालक्ष्मी रेसकोर्स अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. मुंबई नगर निगम ने थीम पार्क स्थापित करने की अपनी योजना को नवीनीकृत किया है. आखिर रेसकोर्स को मुंबई में इतना प्रतिष्ठित स्थान क्यों मिला हुआ है और इससे जुड़ा विवाद क्या है? दरअसल, मुंबई के महालक्ष्मी रेसकोर्स में करीब 140 साल पुरानी घुड़दौड़ की परंपरा जल्द ही बीते हुए दिनों की बात हो सकती है क्योंकि रेसकोर्स का प्रबंधन करने वाले रॉयल वेस्टर्न इंडिया टर्फ क्लब (RWITC) के 700 में से 540 सदस्यों ने इसकी जमीन पर थीम पार्क बनाने के लिए वोटिंग की है.
क्लब की जमीन पर 19 साल की लीज साल 2013 में समाप्त हो गई. तभी से मुंबई के इस रेसकोर्स का अस्तित्व खतरे में है. हाल ही में बीएमसी और महाराष्ट्र सरकार ने क्षेत्र में एक थीम पार्क स्थापित करने और रेसकोर्स को ट्रांसफर करने की योजना को नवीनीकृत किया. बीएमसी के इस कदम की RWITC के एक वर्ग, राजनेताओं और कार्यकर्ताओं से कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
रेसकोर्स इतना प्रतिष्ठित स्थान क्यों मिला है?
कभी ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और सऊदी अरब के राजा जैसे विदेशी नेताओं की मेजबानी करने वाले महालक्ष्मी रेसकोर्स अस्तित्व में कैसे आया? क्रिकेट की तरह ही भारत में घुड़दौड़ की शुरुआत अंग्रेजों द्वारा की गई थी. साल 1777 में भारत को अपना पहला रेसकोर्स चेन्नई (तब मद्रास) के गिंडी में मिला था.
उसके सालों बाद 1802 में चार ब्रिटिश अधिकारियों ने बॉम्बे टर्फ क्लब की स्थापना की और घुड़दौड़ के लिए भायखला को चुना. बाद में बॉम्बे डाइंग टेक्सटाइल कंपनी के प्रमुख कुसरो एन वाडिया ने रेसकोर्स को बायकुला से महालक्ष्मी में 225 एकड़ के भूखंड में ट्रांसफर करने का प्रस्ताव रखा, जो उस समय एक दलदली भूमि थी. अरब सागर के बगल में स्थित इस क्षेत्र को वाडिया एक शोपीस में बदलना चाहते थे. उन्होंने महालक्ष्मी रेसकोर्स बनाने के लिए उस समय 60 लाख रुपये का लोन बिना किसी ब्याज दिया था, जिसका काम साल 1883 में पूरा हुआ.
साल 1935 में तत्कालीन सम्राट किंग जॉर्ज पंचम द्वारा क्लब के नाम में "रॉयल" जोड़ने की मंजूरी देने के बाद क्लब का नाम बदलकर रॉयल वेस्टर्न इंडिया टर्फ क्लब (RWITC) कर दिया गया. आजादी के बाद भी क्लब ने अपना नाम बरकरार रखा.

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