
हेमंत सोरेन के ये 3 फैसले अरविंद केजरीवाल को असमंजस में डालने के लिए काफी हैं
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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी के पहले रिजाइन करके एक नजीर पेश कर दी है. अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने भी ऐसा करने का नैतिक दबाव बन जाएगा.
झारखंड के पूर्व सीएम बन चुके हेमंत सोरेन ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मुश्किल में डाल दिया है.हेमंत सोरेन ने ईडी की पूछताछ के बाद गिरफ्तार होने के पहले ही बुधवार देर रात प्रदेश के राज्यपाल से मिलकर अपना त्यागपत्र सौंप दिया. जाहिर है कि उनके फैसले से सबसे ज्यादा दहशत में अगर कोई आया होगा तो वो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही होंगे. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के पहले तक प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस पर देश के दो मुख्यमंत्रियों की प्रतिक्रिया बिलकुल एक जैसी देखने को मिलती रही है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को ईडी ने अलग अलग मामलों में पूछताछ के लिए कई-कई बार नोटिस भेजा लेकिन दोनों में से किसी ने भी गंभीरता से नहीं ले रहा था. अब जब दोनों में एक सीएम हेमंत सोरेन गिरफ्तारी के साथ त्यागपत्र भी दे चुके हैं तो निश्चित है कि दूसरे सीएम के लिए बेचैनी बढ़ गई होगी.
सोरेन के जैसे समन को हल्के में लेने वाले केजरीवाल अब क्या करेंगे?
ईडी के समन पर अरविंद केजरीवाल ने करीब करीब हेमंत सोरेन जैसा ही स्टैंड ले रखा था. हेमंत सोरेन को अब तक 10 बार पूछताछ के लिए बुलाया जा चुका था.और अरविंद केजरीवाल को 5 बार. शराब घोटाले मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 31 जनवरी तक 5 बार समन भेज चुका है.इससे पहले ईडी ने 17 जनवरी, 3 जनवरी, 21 दिसंबर और 2 नवंबर को दिल्ली सीएम को समन भेजा था, लेकिन वो पेश नहीं हुए थे. ईडी के लगातार समन जारी करने के बाद आम आदमी पार्टी ने दावा किया था कि ये सारी प्रक्रिया अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने के लिए की जा रही है. ईडी उन्हें पूछताछ के बहाने बुलाकर गिरफ्तार करना चाहती है. AAP का कहना है कि अगर ईडी को पूछताछ करनी है तो वह अपने सवाल लिखकर केजरीवाल को दे सकती है. अरविंद केजरीवाल अब तक हेमंत सोरेन की तरह पेश होने को राजी नहीं हो रहे थे. सोरेन की तरह मिलता जुलता जवाब भी दे रहे थे जैसे ईडी का समन गैरकानूनी हैं, और राजनीति से प्रेरित आदि आदि.
और इस मामले में ये दोनों ही नेताओं ने शरद पवार जैसा रवैया नहीं अपनाया. शरद पवार ने तो नोटिस मिलने पर ईडी के दफ्तर जाकर पेश होने का ऐलान कर दिया था. बाद में ईडी की तरफ से शरद पवार को बोल दिया गया कि उनको दफ्तर आकर पेश होने की जरूरत नहीं है.जाहिर है कि आम जनता के मन में इस डर का मतलब कुछ और निकलता है. शायद यही कारण है कि केंद्र सरकार के इस रवैये पर न दिल्ली में हो हल्ला है और न ही झारखंड में. अन्यथा अपने प्रिय नेता के साथ इस तरह का एक्शन होने पर समर्थक मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं. सोरेन ने जिस तरह बिना बवाल किए गिरफ्तारी दे दी क्या अगली पेशी से पहले केजरीवाल भी रिजाइन दे देंगे? या गिरफ्तारी की प्रतिक्षा करेंगे? यह सवाल लगातार बना रहेगा.
कल्पना सोरेन की बजाय परिवार से बाहर का मुख्यमंत्री चुनना
राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा थी कि अरविंद केजरीवाल भी त्यागपत्र देने की स्थिति में अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल की ताजपोशी करवा सकते हैं. दरअसल राजनीति में कोई अपना सगा नहीं होता है.देश का इतिहास रहा है कि परिवार के किसी सदस्य को छोड़कर जब भी किसी दूसरे को सत्ता सौंपी गई, चाहे वो व्यक्ति कितना ही खास रहा हो जल्द ही हाथ से निकल गया है. शायद यही कारण है कि क्षेत्रीय पार्टियों में अपने उत्तराधिकार के लिए खून के रिश्ते ही नजर आते हैं. बिहार में राबड़ी देवी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रही हैं कि जिस तरह उनको सत्ता मिली उसी तरह उन्होंने अपने परिवार को वापस सौंप दी.

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