
हिंसा में जलते ढाका का सनातनी कनेक्शन... सदियों पुरानी परंपरा और शक्तिपीठ से जुड़ाव
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ढाकेश्वरी मंदिर बांग्लादेश की राजधानी ढाका का एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जो देवी दुर्गा के एक स्वरूप पर आधारित है और शहर का नाम इसी मंदिर से जुड़ा है. यह मंदिर शाक्त पीठ माना जाता है और इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में सेन वंश के राजा बल्लाल सेन ने कराया था.
बांग्लादेश की राजधानी ढाका के पुराने हिस्से में मौजूद ढाकेश्वरी देवी का मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह इतिहास, आस्था और सांस्कृतिक परंपरा का जीता-जागता प्रमाण है. यही वही मंदिर है, जिसने बांग्लादेश की राजधानी को उसका नाम और पहचान दी है. आज बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले हो रहे हैं. नई पहचान गढ़ने की कवायद में संस्कृति और परंपरा को तोड़कर उनके नामो-निशां मिटाने की कोशिश की जा रही है. बावजूद इसके देश का राजधानी 'ढाका' का नाम अपने आप में ये याद दिलाने के लिए काफी रहेगा, उसकी सांस्कृतिक जड़ें कहां से निकली और कहां तक फैली हुई हैं.
देवी दुर्गा का ही स्वरूप हैं ढाकेश्वरी मां
ढाका में मौजूद ढाकेश्वरी मंदिर का नाम देवी दुर्गा के एक स्वरूप पर आधारित है. ‘ढाकेश्वरी’ का अर्थ है, ढाका की देवी. इसी देवी के नाम पर ढाका शहर का नाम पड़ा. सदियों से यह मंदिर बंगाल क्षेत्र में शक्ति उपासना का एक प्रमुख केंद्र रहा है. ढाकेश्वरी मंदिर को 'शाक्त पीठ' माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया था, तब भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को लेकर इधर-उधर भटकने लगे. तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किए, जो अलग-अलग स्थानों पर गिरे. इन स्थानों को शक्ति पीठ कहा गया.
माता सती की कथा से जुड़ी मान्यता
मान्यता है कि 'माता सती के मुकुट का रत्न' ढाकेश्वरी स्थान पर गिरा था. इस विश्वास ने ढाकेश्वरी मंदिर को शाक्त परंपरा का पवित्र स्थान बना दिया. यही कारण है कि यह मंदिर केवल बांग्लादेश ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में श्रद्धा के साथ देखा जाता है. इतिहासकारों के अनुसार, ढाकेश्वरी मंदिर का निर्माण '12वीं शताब्दी', यानी लगभग '1100 ईस्वी' के आसपास हुआ था. इसका श्रेय सेन वंश के राजा बल्लाल सेन को दिया जाता है. बल्लाल सेन को एक धार्मिक और कला-संरक्षक राजा माना जाता है, जिन्होंने बंगाल में कई मंदिरों का निर्माण कराया.
कहा जाता है कि ढाकेश्वरी देवी की उपासना की प्रसिद्धी इतनी दूर-दूर तक थी कि धीरे-धीरे उनके नाम से ही क्षेत्र की पहचान बनने लगी और आगे चलकर यही स्थान 'ढाका' कहलाया. हालांकि मंदिर की वर्तमान संरचना उस काल की नहीं है, क्योंकि समय-समय पर इसमें कई बार तोड़फोड़, पुनर्निर्माण और मरम्मत होती रही है.

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