
हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी का BJP से गठबंधन टूटना क्यों विपक्षी कांग्रेस के लिए झटका है?
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हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी का चार साल पुराना गठबंधन टूट गया है. दुष्यंत चौटाला की पार्टी अलग हुई है बीजेपी से लेकिन यह विपक्षी कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है. कैसे?
हरियाणा के लिए मंगलवार का दिन बदलाव की बड़ी बयार लेकर आया. सूबे में सरकार की तस्वीर बदल गई है तो साथ ही बदला है गठबंधनों का गणित भी. मनोहर लाल खट्टर की जगह सरकार की कमान अब नायब सिंह सैनी के हाथों में है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का चार साल पुराना गठबंधन चुनावी साल में आकर टूट गया है. बीजेपी-जेजेपी गठबंधन टूटने की खबर ऐसे समय में आई है जब पिछले कुछ दिनों से एक के बाद साथ छोड़कर जा चुके पुराने और नए सहयोगियों की एनडीए में एंट्री की खबरें आ रही थीं.
बीजेपी जहां 'अबकी बार, 400 पार' के टारगेट तक पहुंचने के लिए नए-नए सहयोगियों को जोड़ रही है. वहीं, अब हरियाणा में दो गठबंधन सहयोगियों की राहें अलग हो रही हैं. इसका लोकसभा और इसी साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव में क्या प्रभाव पड़ेगा? किसे नफा होगा और किसे नुकसान? इन सबको लेकर भी चर्चा छिड़ गई है. कहा जा रहा है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में हुई टूट का सीधा नुकसान विपक्षी कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है. अब सवाल यह भी है कि टूट सत्ताधारी गठबंधन में हुई तो फिर नुकसान विपक्ष को कैसे?
कांग्रेस को नुकसान कैसे?
सत्ताधारी गठबंधन में टूट विपक्ष के लिए झटका कैसे है? इसे समझने के लिए हरियाणा के सामाजिक समीकरणों के साथ ही सियासी मिजाज की भी चर्चा करनी होगी. हरियाणा में करीब 25 फीसदी जाट आबादी है. हरियाणा की सत्ता के शीर्ष पर लंबे समय तक जाट चेहरे काबिज रहे हैं. चौटाला परिवार की इंडियन नेशनल लोक दल हो या भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सहारे कांग्रेस पार्टी, दोनों ही दलों की राजनीति का आधार जाट ही रहे हैं.
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बीजेपी ने 2014 के चुनाव में जीत के बाद जब गैर जाट मनोहर लाल खट्टर को सरकार की कमान सौंपी, तब इसे लेकर भी खूब हो-हल्ला भी हुआ. 2019 के चुनाव में बीजेपी बहुमत के आंकड़े से छह सीट पीछे रह गई तो इसके पीछे भी गैर जाट सीएम और जाट आरक्षण को लेकर जाट वोटर्स की नाराजगी एक वजह बताई गई. 2024 के चुनाव से पहले भी जाट नाराज बताए जा रहे हैं. किसान आंदोलन के समय पंजाब के बाद हरियाणा दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा था. किसान कुछ दिन पहले भी एमएसपी से संबंधित कानून की मांग को लेकर सड़क पर उतर आए थे. कांग्रेस को माहौल अपने मुफीद लग रहा था लेकिन अब तस्वीर बदल गई है.

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