साक्षी का मर्डर पूरी दुनिया ने देखा, फिर क्यों चश्मदीद और सबूत जुटा रही है दिल्ली पुलिस? जानिए वजह
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वारदात के बाद पकड़े जाने पर आरोपी साहिल ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उसने वारदात की सीसीटीवी देखकर उसमें खुद को पहचाना और साक्षी के होने की बात भी कही. वो साफ कह रहा है कि उसी ने साक्षी को मारा है. लेकिन फिर भी पुलिस को चश्मदीद और सबूतों की तलाश है.
Sakshi Murder Case: साक्षी हत्याकांड ने पूरे देश को दहला दिया. इस लाइव मर्डर की तस्वीरें देखकर लोगों का कलेजा बैठ गया. आरोपी साहिल ने साक्षी का कत्ल करते हुए वहशीपन की सारी हदें पार कर दी. एक के बाद एक चाकू से ताबड़तोड़ वार... फिर पत्थर से कुचलना. ये सब देखकर पुलिस भी हैरान है. कातिल पुलिस की गिरफ्त में आ चुका है और अब पुलिस इस पूरे घटनाक्रम को फिर से समझने की कोशिश कर रही है. इसी सिलसिले में साहिल को मौका-ए-वारदात पर ले जाया गया था. आइए जानते हैं कि पुलिस क्यों और कैसे कर रही है आगे की तफ्तीश?
चश्मदीद और सबूतों की तलाश वारदात के बाद पकड़े जाने पर आरोपी साहिल ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उसने वारदात की सीसीटीवी देखकर उसमें खुद को पहचाना और साक्षी के होने की बात भी कही. वो साफ कह रहा है कि उसी ने साक्षी को मारा है. लेकिन फिर भी पुलिस को चश्मदीद और सबूतों की तलाश है. ऐसे सवाल उठता है कि जब कातिल खुद कह रहा है कि कत्ल उसी ने किया है. वो अपना गुनाह कुबूल कर रहा है, तो आखिर पुलिस इतनी कवायद क्यों कर रही है?
अहम होते हैं सर्पोटिंग एविडेंस इसी सवाल का जवाब जानने के लिए हमने यूपी पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की. उन्होंने बताया कि अगर एक सबूत को दूसरे सबूतों के साथ जोड़ दिया जाता है, तो वो एक ठोस सबू बन जाता है. मान लीजिए किसी ने आरोपी को चाकू मारते देखा, तो सर्पोटिंग एविडेंस ये होगा कि पीड़ित के शरीर पर चाकू मारने के घाव हों. लेकिन वो चाकू का घाव है, इसके लिए मेडिकल जांच होगी. जिसमें कहा जाएगा कि पीड़ित को धारदार हथियार से चोट आई है. और इसके बाद पुलिस वो चाकू बरामद भी कर लेती है. तो ये पूरा सिक्वेंस हो जाएगा कि इस चाकू से आरोपी ने हमला कर पीड़ित को जख्मी किया और घाव साफ दिख रहे हैं. मेडिकल रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है. वो आगे बताते हैं कि एक सबूत के तहत ये भी पता चल जाता है कि चाकू कहां से और कब खरीदा गया. ये सारी श्रंखला आपस में जुड़ जाए तो सबूत ठोस बन जाता है.
बयान की अहमियत बयान को लेकर वो बताते हैं कि पुलिस अभिरक्षा में दिया गया मुल्जिम का बयान अदालत में मान्य नहीं होता है. जब तक कि वो बयान एविडेंस एक्ट की धारा 27 के तहत पुष्ट ना हो. कोर्ट में भी आरोपी के संबंधित बयान ही मान्य होते हैं. जैसे कि आरोपी ने चाकू से कत्ल किया और पुलिस ने उसी की निशानदेही पर वो चाकू बरामद कर लिया. इसके बाद आरोपी कोर्ट को घटना के बारे में बताता है कि लेकिन वहां उसके बयान का वो हिस्सा ही मान्य होगा, जिसमें वो कह रहा है कि जो चाकू पुलिस ने बरामद किया है, उसी से मैंने हत्या की वारदात को अंजाम दिया था. इस कारण पुलिस ज्यादा से ज्यादा सबूत जुटाती है.
धारा 164 के तहत बयान जांच विशेषज्ञ उक्त पुलिस अधिकारी ने आगे बताया कि अगर मुल्जिम पुलिस के सामने कह रहा है कि मैंने अपराध किया. मैंने किसी को मारा. मैं ही मुल्जिम हूं. तो पुलिस के समक्ष दिए गए उसके ये बयान अदालत में कोई मायने नहीं रखते. इसके लिए पुलिस को अगर ये विश्वास है कि आरोपी अदालत के समक्ष वही बयान देगा, जो उसने पुलिस के सामने दिया है तो वो अदालत में धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने की अर्जी लगाती है.
मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान इसके बाद अदालत में मुल्जिम को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है. जहां मजिस्ट्रेट उस मुल्जिम से पूछता है कि क्या तुम इकरार-ए-जुर्म करना चाहते हो? अगर मुल्जिम कहता है हां, तो मजिस्ट्रेट उसे ये बताते हैं कि ये तुम्हारे खिलाफ भी जा सकता है. इसके बावजूद भी अगर वो मुल्जिम कहता है कि वो इकरार-ए-जुर्म करता है और बयान देना चाहता हूं. तो वो मजिस्ट्रेट किसी दूसरे मजिस्ट्रेट को उसके बयान दर्ज करने के लिए नियुक्त करता है.
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