
सबसे सस्ता डेटा भारत में, फिर भी 65% महिलाओं और 49% पुरुषों ने कभी यूज नहीं किया इंटरनेट
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4 से 9 जुलाई तक देश में 'डिजिटल इंडिया वीक' मनाया जाएगा. 47 साल पहले डिजिटल इंडिया कैंपेन शुरू हुआ था, जिसका मकसद हर व्यक्ति तक डिजिटल पहुंच को बढ़ाना था. लेकिन क्या डिजिटल बन पाया इंडिया? इंटरनेट की पहुंच कितने लोगों तक है और 2014 के बाद से अब तक इंटरनेट की कीमत कितनी कम हुई? जानें...
2 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जर्मनी की राजधानी बर्लिन में थे. यहां उन्होंने भारतीयों को संबोधित किया. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि जितना सस्ता डाटा भारत में है, वो बहुत से देशों के लिए अकल्पनीय है.
ये पहली बार नहीं था जब पीएम मोदी ने भारत में सबसे सस्ता इंटरनेट होने की बात कही. इससे पहले अगस्त 2019 में पीएम जब बहरीन के दौरे पर थे, तब भी उन्होंने कहा था कि मोबाइल फोन और इंटरनेट भारत के सामान्य से सामान्य परिवार की पहुंच में है. दुनिया में सबसे सस्ता डेटा भारत में है.
बीजेपी अक्सर सस्ते इंटरनेट के लिए मोदी सरकार को श्रेय देती है. दिसंबर 2019 में तब के आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्वीट किया था कि 2014 में मोदी सरकार आने के बाद से इंटरनेट डेटा की कीमत 22 गुना सस्ती हो गई है.
2014 से पहले तक भारत में एक जीबी डेटा की औसत कीमत 269 रुपये थी, लेकिन अब एक जीबी डेटा की औसत कीमत 54 रुपये के आसपास आ गई है. ये कीमत इससे पहले और कम थी, लेकिन टेलीकॉम कंपनियों की ओर से टैरिफ बढ़ाए जाने के बाद कीमत बढ़ गई है.
डिजिटल इंडिया वीक
इंटरनेट डेटा की बात इसलिए हो रही है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को 'डिजिटल इंडिया वीक' की शुरुआत की. ये कार्यक्रम 9 जुलाई तक चलेगा. ये कार्यक्रम डिजिटल इंडिया कैंपेन के 7 साल पूरे होने पर हो रहा है. इस कैंपेन का मकसद सभी लोगों को डिजिटल बनाना है. कुल मिलाकर हर व्यक्ति तक डिजिटल टेक्नोलॉजी पहुंचाना और भारत की डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ाना इसका मकसद है.

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