
संभल में विवादों का कुआं... शादियों में पूजते थे, जलाते थे दीपक, लेकिन 15 साल पहले कैसे बंद हो गई पूजा
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बुजुर्गों का कहना है कि पहले इस कुएं पर पूजा होती थी, लेकिन धीरे-धीरे इस पर नियंत्रण लगाने की कोशिश की गई. एक बुजुर्ग ने कहा कि पहले जो भी पुलिस इस क्षेत्र में तैनात थी, उन्होंने भी इस पूजा को बंद करवा दिया था क्योंकि लोग इकट्ठा हो जाते थे और यहां बहुत शोर-शराबा होने लगा था. इसके कारण पूजा की परंपरा बंद हो गई, और अब इस कुएं पर कोई पूजा नहीं होती.
बीते दिनों संभल जिले में जामा मस्जिद को लेकर हुई सांप्रदायिक झड़प के बाद से तनाव का माहौल बना हुआ है. 19 नवंबर से यहां तनाव जारी है, जब अदालत के आदेश पर शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया था, क्योंकि दावा किया गया था कि इस स्थल पर पहले हरिहर मंदिर था. इसके बाद टीम 24 नवंबर को भी संभल जामा मस्जिद में सर्वे के लिए पहुंची और इसी दौरान हिंसा भड़क उठी. इस दौरान जब प्रदर्शनकारी मस्जिद के पास एकत्र हुए और सुरक्षाकर्मियों से भिड़ गए तो हिंसा ने उग्र रूप ले लिया. इस दौरान चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए थे.
2012 से रोका गया है कुआं पूजन पुलिस प्रशासन की सख्ती और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्थिति भले ही नियंत्रण में है, लेकिन तनाव कम नहीं हुआ है. इसी बीच जामा मस्जिद के पास स्थित एक कुएं को लेकर भी नया विवाद सामने आया है. स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि इस कुएं पर लंबे समय से पूजा होती आ रही थी, लेकिन 2012 से इस पर पूजा रोक दी गई थी. ये पूजा वर्षों से इसी स्थान पर होती आई थी. कुएं पर दीपक जलाकर रखे जाते थे. यह भी दावा किया जा रहा है कि इस कुएं के पास की स्थितियों के बारे में जो तर्क दिए जा रहे हैं, वो इस क्षेत्र के इतिहास का अहम हिस्सा रहे हैं.
कुआं पूजन की निभाई जाती थी परंपरा मोहल्ला कोट पूर्वी के निवासी दो बुजुर्गों ने बताया कि कुएं पर पूजा की परंपरा सालों से चली आ रही थी. एक बुजुर्ग ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, "जब हमारा भतीजा पैदा हुआ था, तो इस कुएं पर पूजा की गई थी. दीपक भी इसी कुएं पर रखे जाते थे, लेकिन बाद में पुलिस ने इस पूजा को बंद करा दिया." बुजुर्ग ने कहा कि वे अब कुआं पूजन करने के लिए दूसरी जगह पर जाते हैं, क्योंकि पहले की तरह यहां कुआं पूजा करना अब संभव नहीं रहा.
वहीं यहां के स्थानीय निवासी एक और बुजुर्ग ने आजतक से बातचीत में कहा कि, "मेरी उम्र 60 साल है, वर्षों से दीपावली के दिन पूजा करके कुएं पर दीपक रखने की परंपरा को हम निभाते आ रहे थे. अगरबत्ती भी जलाते थे. इस दौरान डॉक्टर बर्क की तूती बोलती थी, और उन्हीं के आदेश पर हमारे दीपक जलाने का विरोध किया गया और उन दीपकों को पैरों से कुचला गया." बुजुर्ग ने बताया कि पहले यहां पर कुएं के पास पूजा होती थी, जिसमें दीपक रखने के बाद पूजा की जाती थी और साथ ही कुएं के साइड में कुछ धार्मिक कर्मकांडी प्रक्रियाएं भी होती थीं. लेकिन अब वह सब बंद हो गया है.
बुजुर्गों का कहना है कि पहले इस कुएं पर पूजा होती थी, लेकिन धीरे-धीरे इस पर नियंत्रण लगाने की कोशिश की गई. एक बुजुर्ग ने कहा कि पहले जो भी पुलिस इस क्षेत्र में तैनात थी, उन्होंने भी इस पूजा को बंद करवा दिया था क्योंकि लोग इकट्ठा हो जाते थे और यहां बहुत शोर-शराबा होने लगा था. इसके कारण पूजा की परंपरा बंद हो गई, और अब इस कुएं पर कोई पूजा नहीं होती.

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