
संघ के 100 साल: वो चेहरे जो सनातन और संघ के इतिहास लेखन की नींव के पत्थर हैं
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नाना पालकर, श्रीपाद सातवलेकर, रंगा हरि, हो वे शेषाद्रि... ये कुछ ऐसे नाम हैं जिन्हें संघ साहित्य का अग्रदूत माना जाता है. इन विचारकों ने इतिहास पर जमी उपनिवेशवाद की धूल को झाड़ा और भारत की कहानी को भारत के नजरिये से दुनिया के सामने प्रस्तुत किया. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उन्हीं विचारकों की कहानी.
सैकड़ों सालों तक विदेशी आक्रांताओं पहले मुस्लिम फिर अंग्रेजों के शासन में रहने के चलते ना केवल भारत की प्राचीन संस्थाओं को नुकसान हुआ था, बल्कि परम्पराओं और इतिहास के साथ भी काफी छेड़खानी हुई थी. भारतीय रोजी रोटी के लिए कभी फारसी सीखने के लिए विवश थे तो कभी अंग्रेजी. उन्हें उलझाकर विदेशी शासक उन्हें ये समझाने में लगे थे कि आपका उद्धार तो हमने ही किया, आप तो सांस्कृतिक, आर्थिक रूप से बहुत पिछड़े थे.
ऐसे में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गिनती के प्रचारकों को कई स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ रही थी, संगठन विस्तार से लेकर रोजमर्रा के दंगे, विभाजन की तरफ बढ़ते देश, कश्मीर-हैदराबाद समस्या, फिर गांधीजी हत्या के चलते प्रतिबंध, ऐसे में मानसिक गुलामी को दूर करने का भी अभियान प्रस्तावित था. उसी क्रम में संघ के कई चेहरे उठ खड़े हुए, जिन्होंने अपने कंधों पर बीड़ा लिया कि सनातन के इतिहास को सही ढ़ंग से लिखा जाए, नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों को जलने के बाद मूल ग्रंथों को सहेजा जाए और दूसरी तरफ संघ के प्रति अफवाह फैलाने वालों का जवाब भी संघ के सही इतिहास से दिया जाए.
इसके लिए दो तरह के स्वयंसेवक आगे आए, एक वो जिन्होंने पुरातत्व को हथियार बनाया, जैसे भीमबेटका गुफाएं खोजने वाले हरिभाऊ वाकणकर, सरस्वती नदी को खोजने में जुटने वाले मोरोपंत पिंगले व दर्शनलाल जैन आदि और दूसरे वो जो प्राचीन गंथों को मूल रूप में सहेजने, शोध कार्य को बढ़ाने तथा संघ से जुड़ी घटनाओं को सहेजने में जुटे जैसे श्रीपाद सातवलेकर, हो. वे. शेषाद्रि, मोरोपंत पिंगले, रंगा हरि और सीपी भिषिकर जैसे स्वयंसेवक. ‘बंच ऑफ थॉट्स’ को संकलित करने वाले, भारत विभाजन पर अमर ग्रंथ लिखने वाले हो. वे. शेषाद्रि उन्हें संघ साहित्य को सहेजने का अग्रदूत माना जाता है,
हो. वे. शेषाद्रि का पूरा नाम था होंगसन्द्र वेंकटरमैया शेषाद्रि. संघ की स्थापना के अगले वर्ष शेषाद्रि बंगलौर में जन्मे थे. 1943 में संघ से जुड़े, उसके कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के बावजूद शेषाद्रि जी ने 1946 में एमएससी कैमिस्ट्री से मैसूर विश्वविद्यालय का गोल्ड मेडल ले लिया था. ऐसे में उस दौर में वे एक शानदार करियर बना सकते थे, लेकिन उन्होंने अपना सर्वस्व संघ के नाम कर दिया. घर छोड़ दिया और संघ में पूर्णकालिक प्रचारक बन गए. एक दिन वो संघ के दूसरे सर्वोच्च स्थान पर पहुंचे और 13 साल तक (1987 से 2000 तक) संघ के सरकार्यवाह का दायित्व संभालते रहे. उसके बाद भी अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख रहे. हालांकि उससे पहले मंगलौर में दायित्व संभाला, फिर पूरा कर्नाटक संभाला और फिर 1986 तक पूरा दक्षिण भारत.
अपने विचारों को अलग अलग मुद्दों पर लेखों के जरिए जनता तक पहुंचाना उनका नियमित काम था. संघ से जुड़े तमाम पत्र पत्रिकाओं में उनके लेख नियमित प्रकाशित होते थे और बहुत सारे लोगों को, स्वयंसेवकों को उनके लेख का इंतजार भी रहता था. मुद्दों पर उनकी पकड़, शोध, तथ्य और उनको पिरोने की उनकी शैली के सभी प्रशंसक थे. बंगलौर में उनकी प्रेरणा से संघ व सनातनी साहित्य के लिए यादवराव जोशी जी ने ‘राष्ट्रोत्थान परिषद’ स्थापित की. शेषाद्रि ने अपने जीवनकाल में 100 से भी अधिक छोटी बड़ी पुस्तकें भी लिखी थीं, लेकिन उनको जाना जाता है ‘बंच ऑफ थॉट्स’ के संकलन के लिए, जो काफी चर्चा व विवादों में रही है. हालांकि बाद में संघ ने उनमें से कुछ अंशों से खुद को अलग कर लिया था. लेकिन संघ के विरोधियों के लिए आज भी वो अंश हथियार का काम करते हैं. लेकिन संघ के इतिहास पर काम करने वाले बाहरी शोधकर्ता हों या अंदर के, उनके लिए ये संकलन संघ को समझने के लिए एक अमूल्य श्रोत माना जाता है.
उनकी दूसरी किताब जो चर्चा में रही है और अब भी रहती है, वो है ‘और देश बंट गया’. तमाम शोधकर्ता मांनते हैं कि विभाजन की विभीषिका को समझने के लिए इससे बेहतर ग्रंथ कोई हो ही नहीं सकता. तमाम देसी विदेशी श्रोतों से उन्होंने इतने संदर्भ व तथ्य इकट्ठा किए हैं कि लोग हैरान रह जाते हैं, उससे ज्यादा हैरान करती है उनकी तथ्यों को पिरोकर हृदय विदारक कहानियों को लिखने की शैली. ये किताब ना आती तो शायद कई पीढ़ियों को भारत विभाजन के पीछे का दर्द इतना समझ ही नहीं आता. शायद तभी केन्द्र सरकार ने 14 अगस्त को ‘भारत विभाजन विभीषिका दिवस’ के तौर पर मनाना शुरू किया होगा. उनकी एक पुस्तक ‘तोरबेरलू’ को कन्नड़ साहित्य अकादमी ने भी पुरस्कृत किया.

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