
लद्दाख मसले पर सामना का वार- चीन धोखेबाज पड़ोसी, फिर खुराफात कर सकता है
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चीन के मसले पर शिवसेना ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि चीन एक धोखेबाज पड़ोसी है, ऐसे में सीमा पर नरमी के साथ उसे कारोबार के क्षेत्र में नरमी देने में सावधानी बरतनी चाहिए.
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में गुरुवार को एक बार फिर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा है. चीन के मसले पर शिवसेना ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि चीन एक धोखेबाज पड़ोसी है, ऐसे में सीमा पर नरमी के साथ उसे कारोबार के क्षेत्र में नरमी देने में सावधानी बरतनी चाहिए. सामना में लिखा गया है, ‘लद्दाख सीमा पर हिंदुस्तान-चीन के बीच का तनाव पिछले सप्ताह समाप्त हो गया. अब व्यापारिक संबंधों के बीच के तनाव के भी कम होने के संकेत हैं. चीन की लगभग 45 कंपनियों को हिंदुस्तान में कारोबार शुरू करने की छूट दिए जाने की संभावना है. संक्षेप में कहें तो कोरोना के कहर के बाद चीनी कंपनियों, उनके हिंदुस्तान में कारोबार और निवेश आदि के संबंध में मोदी सरकार द्वारा ली गई सख्त भूमिका शिथिल होगी, ऐसा प्रतीत हो रहा है. राजनीति और विदेशी संबंध, परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं, उसमें समय के अनुसार सख्ती कम या ज्यादा होती रहती है.’ 'खुराफात कर सकता है चीन' शिवसेना ने सवाल किया, ‘वहां चीनी सीमा पर सैन्य तनाव कम होना और यहां चीनी व्यापार संबंधों में सख्ती कम होना, इसे महज संयोग माना जाए क्या? आठ महीनों से पूर्वी लद्दाख सीमा पर हिंदुस्तान-चीन का सैन्य संघर्ष चरम पर पहुंच गया था. चीनी सेना द्वारा हिंदुस्तान में की गई घुसपैठ, उसकी वजह से गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हुआ रक्तरंजित संघर्ष, पीछे हटने को लेकर दोनों देशों की सख्त भूमिका, इस परिप्रेक्ष्य में पिछले सप्ताह चीन और हिंदुस्तान के बीच ‘सामंजस्य’ करार होता है, दोनों सेनाएं पीछे हटती हैं, सीमा पर तनाव कम होता है और यहां हिंदुस्थान-चीन व्यापार में निर्माण हुई गुत्थी के सुलझने की खबरें प्रसारित होती हैं.’ शिवसेना ने चेताते हुए कहा कि चीन हमारा सबसे अविश्वसनीय और धोखेबाज पड़ोसी है. व्यावसायिक हित के लिए सीमा पर नरमी बरतनेवाला चीन उद्देश्य पूर्ति हो जाने पर सरहद पर फिर खुराफात कर सकता है. फिर भी वहां सीमा पर चीन को पीछे धकेल दिया इसलिए ‘जीत का जश्न’ मनाना और यहां हिंदुस्तान-चीन व्यापार तनाव कैसे कम किया इसलिए पीठ थपथपाई जा रही है. सामना में केंद्र पर हमला करते हुए कहा गया कि आत्मनिर्भर और राष्ट्रवाद का ढोल खोखला साबित हुआ तो चीन के दबाव में आप नरम हो गए? सामना में कहा गया कि वहां सीमा पर चीन पीछे हटता है और यहां व्यापार में हमारी सरकार उसे ‘आगे बढ़ने’ देती है. केंद्र सरकार न ही इस ‘संयोग’ को स्वीकार करेगी, न ही वहां ‘पिछड़ने’ और यहां ‘अगुवाई’ वाली चाल का खुलासा करेगी. अर्थात बिल्ली आंखें बंद करके दूध पीती है, फिर भी वो दुनिया को दिखाई दे ही जाता है. केंद्र सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए तथा चीन जैसे दगाबाज पड़ोसी के संदर्भ में तो ताक पर बर्तन न छुपाए, इतना ही!
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