
रूस से नहीं बनी बात लेकिन UAE में भारत को हासिल हुई बड़ी सफलता!
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भारत अपने इस्तेमाल के 85 फीसद तेल के लिए निर्यात पर निर्भर है इसलिए भारत चाहता है कि तेल के व्यापार में रुपये के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए. इसके लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं और रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण में शुरुआती सफलता मिलती भी दिख रही है.
अधिकारियों ने कहा है कि भारत ने पहली बार संयुक्त अरब अमीरात से तेल खरीद के लिए रुपये का इस्तेमाल किया है. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता भारत स्थानीय मुद्रा में तेल की खरीद को बढ़ावा दे रहा ताकि वो अन्य तेल आपूर्तिकर्ताओं के साथ भी इस तरह का सौदा कर सके. भारत कच्चे तेल की खरीद के लिए तीन स्तरीय रणनीति अपना रहा है जिसमें जितना हो सके सस्ता तेल खरीदना, आपूर्तिकर्ता देशों में विविधता लाना और रूसी तेल पर लगे 60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप जैसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन न करना शामिल है.
भारत की इस तीन स्तरीय रणनीति ने अरबों डॉलर बचाने में मदद की है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया जिससे भारी मुनाफा हुआ है.
इसी के साथ ही भारत अब डॉलर की अदला-बदली में होने वाली लागत से बचने के लिए रुपये में व्यापार को बढ़ावा देना चाहता है. भारत ने जुलाई में यूएई के साथ रुपये के निपटान के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था और इसके तुरंत बाद इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडीएनओसी) से दस लाख बैरल कच्चे तेल की खरीद के लिए भारतीय रुपये में भुगतान किया.
भारत ने रूस से भी कुछ मात्रा में कच्चे तेल की खरीद के लिए रुपये का इस्तेमाल किया था. हालांकि, रूस के साथ रुपये में व्यापार को लेकर बात बहुत ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई.
अधिकारियों का कहना है कि विदेशी व्यापार के लिए दशकों से अमेरिकी डॉलर ही इस्तेमाल होता आया है लेकिन अब भारत डॉलर के इस्तेमाल को कम कर भारतीय रुपये में व्यापार को बढ़ावा देना चाहता है.
कई देशों से साथ रुपये में व्यापार करने की योजना

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