
रिव्यू: कॉमेडी की कब्र में धंसे 'क्रिंज' का पुनर्जन्म है 'विक्की विद्या का वो वाला वीडियो', राजकुमार-तृप्ति भी नहीं बचा सके फिल्म
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राजकुमार और तृप्ति की फिल्म देखकर आप हैरान हो जाएंगे कि आखिर एक ही फिल्म कितनी बार दर्शकों की समझदारी के स्तर को बंदरों से भी कम साबित कर सकती है! आपको जब भी लगेगा कि अब इस फिल्म में इससे ज्यादा बचकाना कुछ नहीं हो सकता, बस तभी फिल्म का ह्यूमर एक लेवल और नीचे गिर जाएगा.
ऐसा रोज-रोज नहीं होता कि हम लोग किसी फिल्म की मीडिया स्क्रीनिंग से बाहर निकलें और एक दूसरे का मुंह ताक रहे हों कि आखिर हमारे साथ अंदर हुआ क्या?! इस साल इंडियन सिनेमा की लिमिट्स को और ज्यादा बढ़ाने का सबसे ज्यादा क्रेडिट दो डायरेक्टर्स को मिलना चाहिए- नाग अश्विन और राज शांडिल्य. एक तरफ अश्विन ने 'कल्कि 2898 AD' से इंडियन सिनेमा की हदों को ऊपर की तरफ बढ़ाया. दूसरी तरफ 'विक्की विद्या का वो वाला वीडियो' से राज ने इसे नीचे की तरफ जमकर स्ट्रेच किया है!
राजकुमार राव और तृप्ति डिमरी की इस फिल्म को देखकर आप हैरान हो जाएंगे कि आखिर एक ही फिल्म कितनी बार दर्शकों की समझदारी के स्तर को बंदरों से भी कम साबित कर सकती है! आपको जब भी लगेगा कि अब इस फिल्म में इससे ज्यादा बचकाना कुछ नहीं हो सकता, बस तभी आप सरप्राइज हो जाएंगे और फिल्म का ह्यूमर एक लेवल और नीचे गिर जाएगा. बल्कि, इस फिल्म को बचकाना कहने के लिए मैं बच्चों से माफी मांगता हूं. वो कम से कम जो करते हैं मासूमियत में करते हैं. यहां तो मेकर्स ने इरादतन ह्यूमर की हत्या की है.
कौन सा वीडियो, कैसा वीडियो? ऋषिकेश निवासी विक्की (राजकुमार राव) और विद्या (तृप्ति डिमरी) का बचपन का प्यार, फिल्म के पहले 15 मिनट में ही शादी में बदल जाता है. 1997 में सेट इस कहानी में नवविवाहित युगल को उनके पेरेंट्स, ट्रेंडानुसार हनीमून के लिए वैष्णों देवी भेजना चाहते हैं. मगर इस मध्यमवर्गीय कपल को तो फिल्मी कपलत्व का चरम प्राप्त करना है, इसलिए वो गोवा चले जाते हैं.
वैसे, ये अपने आप में एक बहुत बड़ा सांस्कृतिक अपराध है क्योंकि गोवा के समंदर में जलक्रीड़ा का प्लान बनाकर, वैष्णों देवी में लंगर खाते पाया जाना ही हमारी सच्ची भारतीय ट्रिप परंपरा है! और फिल्म में इसका उल्लंघन देखते ही हमें समझ जाना चाहिए था कि आगे ठीक नहीं होने वाला. किन्तु हाय रे कलियुगी सिनेमा लवर बुद्धि...
विक्की चाहता है कि विदेशी लोगों की तरह हनीमून का वीडियो बना लिया जाए ताकि इन खूबसूरत यादों को, जीवन का मुश्किल दौर काटते वक्त देखकर मुस्कुराया जा सके. लेकिन वही समस्या हो जाती है जो सपने देखने वाले लगभग हर अतिउत्साही इंडियन डूड के साथ होती आई है... आईडिया तो अच्छा था, मगर एग्जीक्यूशन खराब.
गोवा में वीडियो बनाया जाता है. ऋषिकेश आकर दोबारा उसका रस-रंजन भी किया जाता है. मगर सीडी को डीवीडी प्लेयर में छोड़ दिया जाता है, जिसे चोर चुरा ले जाता है. तो प्रेम की मादकता में, क्रेजीपन की हदों को टच करने की जरूरत से जो अराजकता पैदा होती है, वही फिल्म की कहानी है. कहानी में सामूहिक विवाह करवाने वाले एक पॉलिटिशियन का प्रकरण भी है. विक्की की बहन चंदा (मल्लिका शेरावत) और पुलिस इंस्पेक्टर (विजय राज) का प्रेम प्रसंग भी इसी बीच घटता है. बीच में चोर की अपनी व्यावसायिक समस्याएं भी हैं जो उसे लिटरली कब्र में पहुंचा देती हैं. ये सारी चीजें मिलकर क्लाइमेक्स में वो चीज बनाती हैं जिसे फिल्म 'इश्क' (1997) में मरहूम रज्जाक खान साहब ने 'मुजस्समा' कहा था.

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