
राजीव गांधी टू मनमोहन सिंह,,, मोदी क्यों मानते हैं इन 30 सालों को देश का सबसे बुरा दौर
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आजादी के बाद भारतीय इतिहास में मिली जुली सरकारों का 30 साल देश के लिए अंधकार का काल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया टुडे को दिए अपने एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में इन तीस वर्षों को ही देश की बर्बादी का कारण क्यों माना है, आइये देखते हैं?
आजादी के बाद देश के किस कालखंड को इतिहास का काला अध्याय कहा जा सकता है? आम तौर पर गैर कांग्रेसी नेता इमरजेंसी के समय को देश के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण समय मानते रहे हैं. पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि पिछले 30 साल (जाहिर है 2014 के पहले वाले 30 साल) देश के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण रहे हैं. इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटर-इन-चीफ तथा चेयरपर्सन अरुण पुरी, वाइस-चेयरपर्सन कली पुरी और ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा से खास बातचीत में पीएम मोदी कहते हैं कि इन सालों में देश की जनता ने मिलीजुली सरकारों का दौर देखा.मिली-जुली सरकारों से उत्पन्न अस्थिरता के कारण हमने 30 वर्ष बरबाद कर दिए. मोदी कहते हैं कि लोग मिली-जुली सरकारों के युग में सुशासन का अभाव, तुष्टिकरण की राजनीति और भ्रष्टाचार देख चुके हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि लोग आशा और आत्मविश्वास से हाथ धो बैठे और दुनिया में भारत की छवि खराब हुई. इस तरह स्वाभाविक रूप से लोगों की पसंद भाजपा बन गई.
आइये देखते हैं कि इस दौर में देश की शासन व्यवस्था और सरकारों में ऐसी क्या बुराई थी जिसके चलते पीएम मोदी को इन 30 वर्षों का जिक्र बार-बार इस इंटरव्यू में करना पड़ता है.
1984 से 2014 तक राजनीतिक पतन का काल
2014 के पहले के 30 साल के कालखंड का मतलब 1984 से 2014 तक का समय. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बनते हैं और 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के पहले मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल खत्म होता है.राजीव गांधी के समय देश आतंकवाद से बुरी तरह झुलसा हुआ था. पंजाब और कश्मीर से पूर्वोत्तर तक आतंकवादियों के खून से लाल हो रहा था. गांधी पंजाब और असम के आतंकवादियों से बातचीत करते हैं पर उन्हें सफलता नहीं मिलती है. और अंत में एक आतंकी हमले में उनकी जान भी जाती है. देश में कंप्यूटर को लाने का श्रेय राजीव गांधी को दिया जाता है पर दूरदर्शी नीतियों के अभाव में हम हार्डवेयर का किंग बनने से रह जाते हैं. बोफोर्स घोटाले के आरोपों के चलते कांग्रेस सरकार का पतन होता है.उसके बाद शुरू होता है देश में अस्थिर सरकारों का दौर. वीपी सिंह अल्पमत वाली सरकार बनाते हैं, उसके बाद चंद्रशेखर 4 महीने के लिए पीएम बनते हैं.1991 में नरसिम्हा राव की सरकार बनती है जो 5 साल चलती तो है पर सरकार बचाने के लिए इतने गुनाह किए जाते हैं कि लोकतंत्र शरमा जाता है. फिर शुरू होता सरकारों के आया राम गया राम का दौर. देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे चेहरे आते और जाते रहते हैं.फिर वाजपेयी के नेतृत्व में और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में स्थाई सरकारें बनती हैं पर पूर्ण बहुमत न होने के चलते ये मिली जुली सरकारें होती हैं . इन सरकारों को बचाए रखना अपने आप में सबसे बड़ा टास्क होता है.जिसके चलते देश के विकास के लिए दूरगामी काम नहीं हो पाता है और कई राजनीतिक दुरभिसंधियां जन्म लेती हैं.
लचर शासन और तुष्टिकरण की राजनीति का काल
पीएम मोदी कहते हैं कि इन 30 सालों के दौरान लोगों ने शासन की कमी, तुष्टिकरण की राजनीति देखी है. दरअसल आसान शब्दों मे कहें तो मिली जुली सरकारों के युग में भ्रष्टाचार के इंतहा को लोगों ने देखा है.लोगों के दिलो दिमाग में यह घर कर जाता है कि हम दुनिया की दौड़ में शामिल नहीं हैं. सरकार बचाने के लिए नरसिम्हा राव पर घूस देने के आरोप लगते हैं. देश के इतिहास में पहली बार किसी पीएम को घूस देने का आरोप लगता है. सरकार बचाने के लिए तुष्टिकरण की राजनीति अपने चरम तक पहुंचती है. यूपीए की शासन व्यवस्था में पावर सेंटर कहां है यह पता लगाना ही मुश्किल था. पीएम मनमोहन सिंह के महत्वाकांक्षी कानून को राहुल गांधी पीसी बुलवाकर फाड़कर फेंक देते हैं.मुलायम सिंह यादव पर आय से अधिक संपत्ति मामले में दबाव डालकर कई बार सरकार बचाई जाती हैं.यह पूरा दौर राजनीतिक दलों के आंतरिक दुरभि संधियों के चलते याद रखा जाएगा.

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