यहां आजादी के जश्न में डूबे थे लोग, वहां डूब रहा था भारत का 'Titanic', हुई सैकड़ों मौत
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टाइटैनिक जहाज हादसे के बारे में पूरी दुनिया बात करती है. लेकिन भारत में भी एक ऐसा ही हादसा हुआ था. जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी. वो भी उस वक्त, जब देश आजाद होने वाला था.
टाइटन पनडुब्बी के डूबने के बाद एक बार फिर दुनिया टाइटैनिक की बात कर रही है. पनडुब्बी हादसे में पांच लोगों की मौत की पुष्टि की गई है. वहीं आज से 111 साल पहले साल 1912 में हुए टाइटैनिक हादसे में 1500 लोगों की मौत हो गई थी. जहाज पर 2200 लोग सवार थे. कई को बाद में बचा लिया गया. इसे दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा समुद्री हादसा कहा जाता है. लेकिन क्या दुनिया भारत के 'टाइटैनिक' हादसे के बारे में जानती है? मतलब ये कि भारत में भी टाइटैनिक जैसा हादसा हुआ था. जिसमें करीब 700 लोगों की मौत हो गई थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हादसे का शिकार बने जहाज का नाम एसएस रामदास था. एक रिपोर्ट में फिल्म निर्देशक किशोर पांडुरंग बेलेकर के हवाले से लिखा गया है कि उन्हें इस हादसे पर फिल्म बनाने का ख्याल साल 2006 में आया था. इसके बाद उन्होंने रामदास के बारे में जानकारी जुटाने का काम शुरू कर दिया. वो दस साल तक हादसे में बचे तमाम लोगों से मिले.
इसके साथ ही उन्होंने कई अखबार पढ़े और अपनी रिसर्च करते रहे. इस काम में उनकी मदद वैज्ञानिक खाजगीवाले ने की. बेलेकर के सफर की शुरुआत अलीबाग के बारकू शेठ मुकादम से मिलकर हुई. ये हादसे में बचने वाले लोगों में शामिल हैं. सबसे आखिर में बोलेकर ने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले अब्दुल कैस से मुलाकात की. वो भी इस हादसे से बचकर निकलने वालों में शामिल थे.
रामदास जहाज को बनाने का काम स्वान और हंटर कंपनी ने किया था. ये वही कंपनी है, जिसने महारानी एलिजाबेथ का जहाज तैयार किया था. साल 1936 में बने रामदास की लंबाई 179 मीटर, चौड़ाई 29 फीट थी. इसमें 1000 यात्री सवार हो सकते है. ये हादसा उस वक्त हुआ जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपने उफान पर था. कुछ साल बाद इंडियन कोऑपरेटिव स्टीम नेविगेशन कंपनी ने इसे खरीद लिया.
दो और जहाज भी डूबे थे समान विचार वाले कुछ राष्ट्रवादियों ने इस कॉपरेटिव नेविगेशन कंपनी की स्थापना की. इसकी शुरुआत कोंकण तट पर सुखकर बोट सेवा के तौर पर हुई. इसे लोग माझी आगबोट कंपनी कहते थे. कंपनी ने इसी वजह से जहाजों के नाम भी साधु संतों के नाम पर रख दिए. फिल्म निर्देशक को अपनी रिसर्च के दौरान ही पता चला कि उसी रास्ते पर दो और जहाज हादसे का शिकार हुए थे.
रामदास से पहले 11 नवंबर, 1927 को एसएस जयंती और एसएस तुकाराम उसी रास्ते पर, ठीक उसी दिन, करीब उसी वक्त डूबे थे. जयंती में 96 लोगों की मौत हुई थी. वहीं तुकाराम में 48 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 96 की जान बचा ली गई. इसके 20 साल बाद उसी रास्ते पर रामदास भी हादसे का शिकार हुआ. जिसमें करीब 700 लोगों की मौत हो गई.
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