
मोदी की तारीफ में उमर अब्दुल्ला के कसीदे क्या इशारा कर रहे हैं?
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उमर अब्दुल्ला के मुंह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ केंद्र में रही वाजपेयी सरकार के दौर तक ले जाता है - और ऐन उसी वक्त देश की चुनाव प्रणाली पर उठते मौजूदा सवालों पर बड़ा राजनीतिक बयान भी लगता है.
उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले केंद्र सरकार के साथ संबंधों को लेकर जो संकेत दे रहे थे, अब उससे भी चार कदम आगे नजर आ रहे हैं.
शुरू से ही उमर अब्दुल्ला ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा और भारतीय जनता पार्टी से आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की तरह टकराने नहीं जा रहे हैं. अरविंद केजरीवाल भी जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थधे तो उनके मन में भी एक काम दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना भी था, लेकिन जाने कब वो गुमनामी के अंधेरे में छूट गया.
सोनमर्ग टनल के उद्घाटन के मौके पर जिस तरह से उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है, बगैर किसी गड़बड़ी के विधानसभा चनाव कराने का क्रेडिट दिया है, और सूबे में अमन, तरक्की और टूरिज्म को लेकर जिस लहजे में प्रधानमंत्री मोदी को श्रेय दे रहे हैं, वैसी तारीफ तो किसी कश्मीरी नेता के मुंह से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए भी नहीं सुनने को मिली है.
मोदी से भी कश्मीर के लोगों को वाजपेयी जैसी उम्मीद
जम्मू-कश्मीर में जब लीक से अलग हटकर पीडीपी और बीजेपी की गठबंधन सरकार बनी थी, करीब करीब हर मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बात की याद जरूर दिलाई जा रही थी. जो बात गठबंधन के पहले मुख्यमंत्री बने मुफ्ती मोहम्मद सईद कह रहे थे, ठीक वही बात बाद के दिनों मे सूबे की मुख्यमंत्री बनीं महबूबा मुफ्ती के मुंह से भी सुनने को जरूर मिलता रहा.
असल में अटल बिहारी वाजपेयी ने 'कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत' का नारा दिया था, जो लंबे अर्से तक वहां के लोगों की जबान पर चढ़ा हुआ था. 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म किये जाने से पहले तक ये बात बार बार दोहराई जाती थी.

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