'मैं डर नहीं रहा, लेकिन सब थोड़ा जल्दी हो रहा...' कैंसर की लास्ट स्टेज पर भी काका का बुलंद था हौसला
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हिंदी सिनेमा में वैसे तो कई स्टार, एक्टर आए और गए, लेकिन चंद ही ऐसे लोग हैं, जिन्होंने सुपरस्टार के टैग को जिया है. राजेश खन्ना के प्रति दीवानगी जगजाहिर है. लगातार सुपरहिट फिल्में, लड़कियों के बीच पॉप्युलैरिटी, दौलत-शोहरत से लबरेज राजेश खन्ना जब कैंसर की गिरफ्त में आए, तो उनकी जिंदगी कैसी हो गई थी. काका के सबसे करीबी भूपेश रसीन से जानिए उनकी ज़िंदगी के अनसुने किस्से...
लीलावती अस्पताल के कमरे में खामोशी से लेटे हुए काका पास में लगे एसी वेंट को लगातार शून्य नजरों से देखे जा रहे थे. 'मैंने उनके चेहरे को पढ़ते हुए पूछा साहब आपको डर लग रहा है?' जवाब में काका कहते, 'अरे नहीं यार.. लेकिन सबकुछ थोड़ा जल्दी हो रहा है..खैर मैंने ये स्वीकार कर लिया है.' फिर चुप.. सन्नाटा... कहने को तो कमरे में दो लोग थे, लेकिन उस वक्त खामोशी ज्यादा शोर कर रही थी. राजेश खन्ना से हुई ये बातें उनकी जिंदगी के आखिरी कुछ समय की हैं, जिसे उनके करीबी भूपेश रसीन हमसे शेयर करते हैं.
भूपेश रसीन और राजेश खन्ना का साथ लगभग 22 साल का रहा था. भूपेश काका को अपने बड़े भाई की तरह मानते थे. भूपेश इस बात का भी दावा करते हैं कि हर कोई काका को अपने हिस्से का जानता है. मैं एकमात्र ऐसा इंसान हूं, जो उनके हर हिस्से से वाकिफ रहा हूं. उनका वो हिस्सा भी जानता हूं, जो उन्होंने बाकियों से छिपा रखा था.
आखिरी के साल आनंद के किरदार को जी रहे थे काका आजतक डॉट इन से खास बातचीत पर भूपेश बताते हैं, 'मैं सबसे पहले उनकी जिंदगी के आखिरी उस साल का जिक्र करना चाहता हूं. जब उन्हें इस बात का पता चल गया था कि अब वो इस दुनिया में बस कुछ वक्त के ही मेहमान हैं. ये आखिर का साल उन्होंने बिलकुल आनंद की तरह ही गुजारा. लीलावती में उनका इलाज चल रहा था. डॉक्टर को बहुत ही मजाकिया अंदाज में कहने लगे कि डॉक मेरी जिंदगी का विजा कब एक्सपायर हो रहा है? उस वक्त उनका इलाज डॉ जगन्नाथ की देखरेख में हो रहा था. डॉक्टर ने उनके पास दो ऑप्शन रखे थे कि वो अपनी जिंदगी के ये कठिन पल डॉक्टर्स की निरगारी में गुजारे, हालांकि काका ने उनकी बात को यह कहते हुए टाल दिया कि वो अपने घर पर मरना चाहते हैं. मैं अपनी मां के कमरे पर अपने आखिर के पल गुजारना चाहता हूं. इतने बड़े बंगले में ग्राउंड फ्लोर पर दो रूम थे, ऊपर तीन बेडरूम है. वो अपनी मां के कमरे में ही रहा करते थे. वो अक्सर मुझसे कहा करते थे कि यहां मेरा क्रिमेशन कर देना, यहां मेरा चौथा होना चाहिए. उन्होंने अपनी मौत को स्वीकार कर लिया था. ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं थी. हालांकि इस बीच कभी उन्हें कमजोर पड़ता नहीं देखा. वो मुस्कुराते हुए ही लोगों से मिलते रहते थे.
वो जिद्द करने लगे थे भूपेश आगे बताते हैं, मुझे याद है अचानक से उनकी तबीयत बिगड़ जाने की वजह से वो वापस से अस्पताल में एडमिट कर दिए गए थे. उन्हें समझ आ गई थी कि अब जिंदगी के चंद दिन ही शेष रह गए हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि यार भूपेश मैंने सबकी कमिटमेंट पूरी कर दी है लेकिन बस इस्माइल के गानों की कंपोजिशन नहीं सुन पाया. चलो इस्माइल के घर चलते हैं. मैं गुस्से में बोल पड़ा काका जी 25 स्लाइनें लगी हुई हैं और आपको इस्माइल के घर जाना है. वो जिद्द करने लगे कि और मुझसे कहा कि इस्माइल को बोलो रात को दस बजे मैं उससे मिलने उसके घर जाऊंगा. पिछली गेट से गाड़ी खड़ी करवा देना, वहीं से जाकर वापस आ जाएंगे. तुम व्हीलचेयर भी तैयार रखना. मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. मैंने उन्हें टालते हुए फौरन इस्माइल को कॉल कर दिया. इस्माइल से कहा कि अगली सुबह अस्पताल आ जाना. मेरे फोन कॉल पर काका नाराज भी हुए थे. अगली सुबह इस्माइल अस्पताल में हाजिर थे. उन्होंने काका से कहा कि आप इस कमिटमेंट से फारिग हो गए हैं सर, मैं चाहता हूं कि आप ठीक होकर मेरा कंपोजिशन सुनें. इस तरह की कमिटमेंट के वो पक्के थे.
यार मुझे अमृतसर लेकर चल.. यहां कर्ज है मेरा भूपेश कहते हैं, उनके गुजरने के कुछ महीने पहले ही हम कांग्रेस की कैंपेनिंग करने के मकसद से अमृतसर पहुंचे थे. मैंने उन्हें मना भी किया था कि काका आपकी हालत ठीक नहीं है, ऐसे में जाना सही नहीं रहेगा. उन्होंने कहा, नहीं, मुझे इस कैपेनिंग का हिस्सा बनना है. वो मेरी जन्मभूमि है. मैं अपनी जन्मभूमि के इस कर्ज को चुकाना चाहता हूं. वो गए, वहां जमीन को हाथ लगाकर चूमा और कहा कि यहां मैं पैदा हुआ था. वो क्रिटिकल हालात में थे.
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