
'मुझे मेरी मां ने अकेले पाला, 18 की उम्र से करने लगा था काम', शाहिद ने बताया क्यों हैं आउटसाइडर
AajTak
शाहिद कपूर ने अपने करियर की शुरुआत 2003 में आई फिल्म 'इश्क विश्क' से की थी. एक्टर पकंज कपूर और एक्ट्रेस नीलिमा अजीम का बेटा होते हुए भी शाहिद खुद को आउटसाइडर मानते हैं, उन्हें अपनी पहली फिल्म के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था.
शाहिद कपूर इन दिनों अपनी फिल्म 'देवा' को लेकर चर्चाओं में हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू में शाहिद ने अपनी मां के साथ बॉन्डिंग और करियर के शुरुआत में होने वाले संघर्षों पर बात की. शाहिद कपूर जब बड़े हो रहे थे तो उन्होंने पिता की कमी झेली. उन्हें नीलिमा अजीम ने अकेले ही पाला, क्योंकि शाहिद और उनकी मां दिल्ली में रहते थे और पिता पंकज कपूर मुंबई में.
इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में, शाहिद कहते हैं, 'पिता से तलाक के बाद मेरी मां ने अकेले ही मेरा पालन-पोषण किया था. जिसे देखकर मुझे बेहद कम उम्र से ही काम करना शुरू करना पड़ा.' नीलिमा अजीम सिर्फ 22 साल की थी जब उन्होंने शाहिद को जन्म दिया था. उनके जन्म के 3 साल बाद ही नीलिमा और पंकज कपूर का तलाक हो गया था.
कम उम्र में ही बन गए थे घर के गार्जियन
शाहिद कहते हैं, जब मेरा जन्म हुआ तब मां बेहद छोटी थी. हम दोस्त जैसे थे. मेरी मां जहां जाती थीं, मुझे भी साथ ले कर जाती थीं. मैं अपनी मां का बड़ा बेटा था. मैं भी खुद को रिस्पांसिबल समझने लगा था. मैं अपने पिता के साथ नहीं रहा, ऐसे में आप अपनी उम्र तो नहीं देखते हैं, लेकिन ऐसा महसूस होता है कि आप घर के गार्जियन है. उस समय मेरे पास देने के लिए बहुत कुछ नहीं था. लेकिन मुझमें अपनी मां के लिए खड़े होने का साहस था. मैं हमेशा अपनी मां के लिए प्रोटेक्टिव था. मुझे उनसे बेहद प्यार था. मेरी मां हमेशा मुझे दोस्त की तरह ट्रीट करती थी. हम आज भी अच्छे दोस्त है.
18 साल की उम्र से ही शाहिद कपूर ने काम करना शुरू कर दिया था. वो करियर की शुरुआत में कई फिल्मी गानों में बैकग्राउंड डांसर के तौर पर काम करते थे साथ ही कई Ad में भी काम करते थे. इतनी कम उम्र में काम के प्रति अपने समर्पण को लेकर शाहिद कहते हैं, 'मुझे लगता है कि मेरे माता-पिता दोनों सुपर अचीवर्स थे. मैं भी खुद को साबित करना चाहता था और जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता था. मैं अपना जीवन बर्बाद नहीं करना चाहता था.'
'सबसे बड़ी एक बात ये था कि मेरी मां सिंगल पैरेंट थीं और मैं उन पर अपने खर्चों का बोझ नहीं डालना चाहता था. मेरे दिमाग में एक ही चीज चलती थी कि मुझे पैसा कमाना शुरू करना होगा. मैं 14-16 साल की उम्र से ही अपनी मां को सपोर्ट करना चाहता था. मेरी मां अकेले ही सब कुछ कर रही थी. मैं उनकी मदद करना चाहता था, उनका हाथ बटाना चाहता था. तो ये सब वहीं से शुरू हुआ.

रूसी बैले डांसर क्सेनिया रयाबिनकिना कैसे राज कपूर की क्लासिक फिल्म मेरा नाम जोकर में मरीना बनकर भारत पहुंचीं, इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है. मॉस्को से लेकर बॉलीवुड तक का उनका सफर किसी फिल्मी किस्से से कम नहीं. जानिए कैसे उनकी एक लाइव परफॉर्मेंस ने राज कपूर को प्रभावित किया, कैसे उन्हें भारत आने की इजाजत मिली और आज वो कहां हैं और क्या कर रही हैं.

शहनाज गिल ने बताया कि उन्हें बॉलीवुड में अच्छे रोल नहीं मिल रहे थे और उन्हें फिल्मों में सिर्फ प्रॉप की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था. इसी वजह से उन्होंने अपनी पहली फिल्म इक कुड़ी खुद प्रोड्यूस की. शहनाज ने कहा कि वो कुछ नया और दमदार काम करना चाहती थीं और पंजाबी इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थीं.

ओटीटी के सुनहरे पोस्टर भले ही ‘नई कहानियों’ का वादा करते हों, पर पर्दे के पीछे तस्वीर अब भी बहुत हद तक पुरानी ही है. प्लेटफ़ॉर्म बदल गए हैं, स्क्रीन मोबाइल हो गई है, लेकिन कहानी की कमान अब भी ज़्यादातर हीरो के हाथ में ही दिखती है. हीरोइन आज भी ज़्यादातर सपोर्टिंग रोल में नज़र आती है, चाहे उसका चेहरा थंबनेल पर हो या नहीं. डेटा भी कुछ ऐसी ही कहानी कहता है.










