महाकुंभ: क्या था 14 अप्रैल का वो श्रापित मिथक, जो इस बार टूट गया?
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महाकुम्भ के लिए 14 अप्रैल की तारीख अप्रिय घटनाओं के लिए याद की जाती है. लेकिन इस बार 14 अप्रैल को ऐसी कोई दुर्घटना नहीं हुई. 14 अप्रैल को बैसाखी के दिन शाही स्नान के दौरान हुई हैं दुर्घटनाएं.
महाकुम्भ का बैसाखी स्नान हमेशा से विवादों और मिथक से भरा रहा है. इतिहास में ऐसा कभी नही हुआ कि बैसाखी पर्व बिना किसी विवाद या दुर्घटना से परे रहा हो. आजादी के बाद पहला कुम्भ 1950 में हुआ था. उस कुम्भ में बैसाखी यानी 14 अप्रैल के शाही स्नान में हर की पौडी में बैरियर टूटने से 50 से 60 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. 1986 के महाकुम्भ में भी बैसाखी के दिन भीड़ बढ़ने से 5 श्रद्धालुओं की जान चली गई थी. 1998 का कुंभ भी इस बुरी छाया से दूर न रह सका. इस महाकुम्भ के 14 अप्रैल के शाही स्नान पर भी श्रापित छाया नजर आती है. 1998 के कुम्भ में इस दिन दो बड़े अखाडों के आपसी विवाद और लड़ाई से शाही स्नान बाधित हो गया था. जबकि 2010 के बैसाखी पर्व पर शाही स्नान के दौरान दुर्घटना में 7 लोगों की मौत हो गई थी. देखा जाए तो आजादी के बाद महाकुम्भ में बैसाखी के शाही स्नान पर हमेशा कुछ न कुछ अप्रिय घटना घटी है.कांग्रेस नेता यह भी कहा कि 'इंडिया ब्लॉक की सरकार बनती है तो NDA की सहयोगी पार्टियां भी गठबंधन में शामिल हो सकती हैं, हालांकि उन्हें शामिल करेंगे या नहीं, इसका फैसला कांग्रेस हाईकमान लेंगे. जयराम से पूछा गया कि क्या चुनाव के बाद नीतीश कुमार और TDP अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू जैसे NDA सहयोगियों के लिए दरवाजे खुले रहेंगे.
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