
मदरसा एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर योगी सरकार को क्या अपील करनी चाहिए? । opinion
AajTak
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सरकार मदरसों के प्रबंधन में दखल नहीं दे सकती, लेकिन मदरसों में क्या पढ़ाया जाए, शिक्षा का स्तर बेहतर कैसे हो, मदरसों में बच्चों को अच्छी सुविधाएं कैसे मिलें, इन विषयों पर नियम बना सकती है. पर सवाल यह है कि बिना दखल दिए क्या ये संभव होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में पारित उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट की संवैधानिकता को बनाए रखा है. इसका सबसे बड़ा असर ये हुआ है कि उत्तर प्रदेश में मदरसे चलते रहेंगे. इससे पहले हाईकोर्ट ने UP के मदरसों में पढ़ रहे सभी बच्चों का दाखिला सामान्य स्कूलों में कराने का आदेश दिया था. इससे यूपी के करीब 25 हजार मदरसों पर बंद होने की कगार पर पहुंच गए थे. आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मीडिया ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के लिए क्यों बड़ा झटका बताया जो समझ में नहीं आया. क्योंकि मदरसा एक्ट के खिलाफ खुद कुछ मुस्लिम संगठन ही गए थे. इसमें योगी सरकार का हाथ नहीं था. और इससे भी बढ़कर बात यह है कि इस फैसले का स्वागत योगी सरकार के दो मंत्रियों ने तुरंत करके सरकार की मंशा स्पष्ट कर दी. यूपी मदरसा एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का हम सम्मान करते हैं. योगी सरकार में मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का जो आज फैसला आया है, उसके अनुरूप न्यायालय ने जो भी दिशा-निर्देश दिए हैं, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उसका पालन करेगी. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने हमेशा मदरसा शिक्षा की बेहतरी के लिए, मदरसा शिक्षा के माध्यम से जो मुस्लिम नौजवान हैं उन्हें अच्छी शिक्षा मिले इस नीयत से काम किया है.
पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को जिस तरह पलटा है उसे जानने के पहले यह बात भी सोचना चाहिए कि इस एक्ट पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट के तर्क क्या थे? दूसरा अगर उन तर्कों में जरा भी दम है तो क्या योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका नहीं दायर करनी चाहिए?
1- सत्रह लाख बच्चों को क्यों नहीं मिलनी चाहिए आधुनिक शिक्षा
इस एक्ट के खिलाफ पहली बार 2012 में दारुल उलूम वासिया नाम के मदरसे के मैनेजर सिराजुल हक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इसके बाद 2014 में लखनऊ के माइनॉरिटी वेलफेयर डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी अब्दुल अजीज, 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर की थी. 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएं और 2023 में अंशुमान सिंह राठौर ने भी याचिका दायर की.इस तरह यह बात क्लियर हो जाना चाहिए कि मदरसा एक्ट के खिलाफ खुद मुसलमानों ने अलख जगाने का प्रयास किया है. वैसे ये मुस्लिम संगठन चाहे जिस भी कारण से इस एक्ट के खिलाफ कोर्ट की शरण लिए हों पर इस पर फैसला करते हुए हाईकोर्ट ने जो फैसला लिया था वो नैतिक रूप से कहीं से भी गलत नहीं माना जा सकता है. हाईकोर्ट ने कहा था कि मदरसे में पड़ रहे 17 लाख बच्चों को उत्तर प्रदेश सरकार के स्कूलों में दाखिला दिया जाए. हाईकोर्ट के इस फैसले से कोई अगर इत्तेफाक नहीं रखता है तो यह केवल उसके समझ का फेर ही हो सकता है. आज के माहौल में मदरसे में शिक्षा ग्रहण करके क्या ये बच्चे अपना करियर संवार सकते हैं? नौकरी तो दूर की बात है ये बच्चे धार्मिक शिक्षा के बल पर आज के आधुनिक समाज के साथ तारतम्य भी नहीं बना सकते हैं. कल को जब ये बच्चे समाज में अपने को अलग-थलग महसूस करेंगे तो जाहिर है कि बुरे लोगों के शिकंजे में फंसने की ज्यादा से ज्यादा संभावना होगी. ऐसे ही बच्चे अपनी उपेक्षा को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे और बंदूक को अपना अंतिम हथियार बना लेंगे.
2-धर्मनिरपेक्षता का यह कैसा रूप
22 मार्च 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मदरसा एजुकेशन एक्ट को असंवैधानिक घोषित करते हुए इसे रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी और जस्टिस विवेक चौधरी ने इस फैसले के तीन मुख्य आधार बताए थे उसमें सबसे प्रमुख तर्क यह था कि यह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है.सुप्रीम कोर्ट के कुछ पुराने फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि सेक्युलरिज्म यानी धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है बिना किसी भेदभाव या धर्म विशेष का पक्ष लिए सरकार सभी धर्मों और संप्रदायों के प्रति समान व्यवहार करेगी. हाईकोर्ट का कहना था कि मदरसों की हर क्लास में इस्लाम की पढ़ाई करना जरूरी है. मॉडर्न सब्जेक्ट या तो नहीं हैं या फिर ऑप्शनल हैं. ऐसे में सरकार का कर्तव्य है कि वह धर्मनिरपेक्ष शिक्षा मुहैया कराए और धर्म के आधार पर शिक्षा देकर भेदभाव न करे. हाई कोर्ट का कहना था कि जब सभी धर्मों के बच्चों को हर सब्जेक्ट में मॉडर्न एजुकेशन मिल रही है, तो धर्म विशेष के बच्चों को मदरसे की शिक्षा तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए. दरअसल 16 से 17 लाख बच्चों को एक विशेष धर्म की शिक्षा मिलना कहीं से भी सही नहीं कहा जा सकता . जब तक मुस्लिम बच्चों को धार्मिक शिक्षा मिलती रहेगी हिंदू धर्म के ठेकेदार लोग इस विशेष व्यवस्था के नाम पर मुस्लिम धर्म के खिलाफ लोगों को बरगलाते रहेंगे. कल्पना करिए कि अगर हिंदू धर्म के ठेकेदार लोग भी इस तरह की शिक्षा की बात करने लगे तो देश की युवा पीढ़ी का क्या हाल होगा? क्या हम दुनिया के देशों से कैसे मुकाबला कर पाएंगे.

इंडिगो की फ्लाइट्स लगातार कैंसिल हो रही हैं और सरकार इसकी सख्ती से जांच कर रही है. यात्रियों की समस्या बढ़ने पर सरकार ने इंडिगो के अधिकारियों को तलब किया है और एयरफेयर पर प्राइस कैपिंग लगाई गई है. 500 किलोमीटर तक किराया साढ़े 7 हजार रुपए जबकि लंबी दूरी के लिए अधिकतम अठारह हजार रुपए निर्धारित किए गए हैं. यात्रियों को रिफंड न मिल पाने की शिकायतें भी बढ़ रही हैं. देखें विशेष.

देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो के बड़े ऑपरेशनल संकट के बीच सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि इस मामले में ऐसी कड़ी कार्रवाई होगी जो पूरे एविएशन सेक्टर के लिए मिसाल बनेगी. नागर विमानन मंत्री राम मोहन नायडू ने इंडिगो पर जवाबदेही तय करने की बात कही और पूछा कि 3 दिसंबर से ही इतनी भारी अव्यवस्था क्यों शुरू हुई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यक्रम में कहा कि भारत आज वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच स्थिरता और भरोसे का स्तंभ बनकर उभरा है. उन्होंने बताया कि देश की GDP वृद्धि 8 प्रतिशत से अधिक रही है, जबकि सुधार अब दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुरूप किए जा रहे हैं. PM मोदी ने गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलने, पूर्वी भारत और छोटे शहरों में क्षमता बढ़ाने, ऊर्जा और मोबाइल निर्माण जैसे क्षेत्रों में तेजी से हुई प्रगति पर भी जोर दिया.










