
बिछड़ रहे सपा के साथी बारी-बारी... पहले जयंत, फिर स्वामी और अब पल्लवी पटेल के झटके से फंस गई राज्यसभा की तीसरी सीट
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पल्लवी पटेल ने राज्यसभा चुनाव में सपा उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान नहीं करने का ऐलान किया है. पहले आरएलडी के साथ छोड़ जाने और अब पल्लवी के इनकार से सूबे की 10 राज्यसभा सीटों के लिए हो रहे चुनाव में सपा की तीसरी फंस गई है. कैसे? आइए समझते हैं.
लोकसभा चुनाव के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में सियासत की तस्वीर बदल रही है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का कुनबा बढ़ रहा है तो वहीं विपक्ष को झटके पर झटके लग रहे हैं. राज्यसभा चुनावों के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रभावशाली पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने विपक्षी इंडिया गठबंधन को झटका देते हुए एनडीए का दामन थाम लिया है. जयंत चौधरी के इस झटके को अभी एक हफ्ते भी नहीं हुए कि अब सपा के भीतर ही सियासी घमासान मचता नजर आ रहा है.
अपने बयानों से विवादों में रहने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव को लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है. स्वामी ने कहा है कि हमने बस पद छोड़ा है. अब गेंद राष्ट्रीय अध्यक्ष के पाले में है. आगे कोई भी कदम उनके एक्शन पर निर्भर करेगा. स्वामी ने बयान के जरिए भी अखिलेश को यह संदेश दे दिया है कि वह पार्टी भी छोड़ सकते हैं. इस्तीफे वाले पत्र की भाषा भी कुछ ऐसी ही है. स्वामी ने इस पत्र के जरिए सपा को 45 से 110 विधानसभा सीट तक पहुंचाने का श्रेय लिया है तो साथ ही पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को बीजेपी के भ्रमजाल से निकालकर जागरुक करने के प्रयास भी गिना दिए हैं.
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स्वामी ने यह भी कहा है कि मैंने अपने तरीके से पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए प्रयास किया और लगे हाथ अपने बयानों से असहमति जताने वालों को छुटभैया नेता भी बता दिया. उन्होंने वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी पर भी सवाल उठाए और अपने बयानों को निजी बयान बताए जाने को लेकर नाराजगी भी जता दी. स्वामी ने अपने साथ व्यवहार को भेदभावपूर्ण और राष्ट्रीय महासचिव के पद को महत्वहीन भी बता दिया. स्वामी के इस्तीफे की भाषा का मजमून यही है कि उन्होंने विधानसभा में सपा की सीटें बढ़ने की क्रेडिट ली है, जनाधार बढ़ाने के प्रयास गिनाए हैं, अपने बयानों को निजी बता किनारा कर लेने को भेदभावपूर्ण और नेतृत्व की चुप्पी पर नाराजगी जताई है और पीडीए को लेकर प्रतिबद्धता की नसीहत भी दी है.
स्वामी की पार्टी से नाराजगी और महासचिव पद से इस्तीफे को राज्यसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. स्वामी प्रसाद को 2022 के विधानसभा चुनाव में हार मिली थी. कहा जा रहा है कि स्वामी को यह उम्मीद थी कि सपा उन्हें राज्यसभा भेज देगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसीलिए सपा उम्मीदवारों के नामांकन के ठीक बाद ही स्वामी ने अलग-अलग मसलों पर नाराजगी जाहिर करते हुए, सपा की सीटें बढ़ने का श्रेय लेते हुए महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया. स्वामी के महासचिव पद छोड़ने की खबर कुछ घंटे पुरानी भी नहीं हुई थी कि सपा को एक और बड़ा झटका दिया पार्टी की विधायक और अपना दल कमेरावादी नेता पल्लवी पटेल ने.
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