
बासमती के आगे अमेरिकी 'Texmati' फेल, फिर क्या? ट्रंप ने चल दी टैरिफ धमकी वाली चाल
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Basmati Vs Texmati: भारत के बासमती चावल की US में बड़ी डिमांड है और अमेरिका ने इसके आयात को कम करने के लिए अपने यहां टैक्समती चावल का उत्पादन शुरू किया था, लेकिन ये भी भारतीय चावल की टक्कर नहीं ले सका. चावल किसानों पर दबाव में Donald Trump ने चावल पर टैरिफ की धमकी दी है.
डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने बीते दिनों दूसरे देशों से आने वाले चावल पर टैरिफ (Trump Warning Of Rice Tariff) लगाने की चेतावनी दी है. भारत जो अमेरिका के लिए चावल का सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक है, सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है. लेकिन आपको पता है भारत पहले अमेरिका से मिलने वाली गेहूं की मदद पर निर्भर था और आज उसका सबसे बड़ा चावल सप्लायर है. हालांकि, अमेरिका ने चावल आयात को कम करने की कोशिशें कीं, इसके लिए Texmati और Jasmati जैसी किस्मों की पैदावार शुरू की, लेकिन ये भारत के बासमती की बराबरी न कर सका और इसका कारोबार जारी है.
'Texmati' की शुरुआत की कहानी टेक्सास स्थित कंपनी राइसटेक ने अमेरिकी लंबे दाने वाले चावल को बासमती के साथ मिलाकर संकर चावल की किस्म विकसित की. इसका उद्देश्य बासमती जैसी सुगंध और लंबे दानों वाला चावल तैयार करना था, जो अमेरिकी वातावरणीय परिस्थितियों में उग सके. इसका नाम 'टैक्समती' रखा गया, जो बेहद हास्यास्पद नाम रहा. लेकिन कहते हैं न जिस तरह पहली नकल हर्मेस या बिरकिन जैसे महंगे बैग की शान-शौकत की बराबरी नहीं कर सकती, उसी तरह US Texmati तमाम कोशिशों के बाद भी भारत के असली बासमती चावल की खुशबू, लंबाई को दोहराने में नाकाम साबित हुआ. इसके बाद अमेरिका ने Basmati के आकार और थाई चमेली चावल की सुगंध को मिलाकर Jasmati चावल भी पेश किया गया, लेकिन ये भी विफल रहा.
भारतीय बासमती को टक्कर देने के लिए मार्केट में टैक्समती और जसमती को 1980 के दशक में उतारा गया था. लेकिन चार दशक बाद देखें, तो आज भी बासमती आगे है. हालांकि, अमेरिका ने इसकी बिक्री जारी रखी, लेकिन भारत से US को होने वाले कुल चावल एक्सपोर्ट में बासमती का हिस्सा 85% से ज्यादा है. चावल उपभोक्ताओं ने हमेशा प्रामाणिकता को प्राथमिकता दी है, खासकर भारतीय प्रवासी और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक खरीदारों के बीच जो कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले अनाज की तलाश करते हैं.
बासमती की US मार्केट में बड़ी हिस्सेदारी भारतीय बासमती चावल की कीमत 880-900 डॉलर प्रति टन के प्रीमियम स्तर पर है. वित्त वर्ष 2023-24 तक भारत की अमेरिका से आयात होने वाले बासमती चावल में 88% हिस्सेदारी है. 2023 में अमेरिका में भारत के बासमती चावल का आयात 9% बढ़कर 270,000 मीट्रिक टन हो गया. 2024-25 में 22.5 मिलियन मीट्रिक टन चावल का निर्यात किया, अमेरिका भेजे गए इस चावल का मूल्य 392 मिलियन डॉलर था, जिसमें से 86% बासमती चावल था. हालांकि थाई चमेली चावल 97% हिस्सेदारी के साथ इस श्रेणी में टॉप पर है. वहीं पाकिस्तान (Pakistan), जो बासमती उत्पादन का दावा करता है, उसके चावल का अमेरिका में मार्केट शेयर सिर्फ 9% है.
अमेरिकी किसानों पर दबाव से टेंशन में ट्रंप भारतीय बासमती को विस्थापित करने में मिली तमाम विफलताओं ने अमेरिकी चावल किसानों पर दबाव बढ़ा दिया. यही बड़ा कारण है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस सप्ताह की शुरुआत में कथित डंपिंग को लेकर अमेरिका को भारतीय चावल निर्यात पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की चेतावनी दे डाली. यही नहीं ट्रंप ने चावल की खेती करने वाले अमेरिकी किसानों के लिए 12 अरब डॉलर के सहायता पैकेज की घोषणा भी की है. Donald Trump ने भारत पर चावल की डंपिंग का आरोप लगाया और व्हाइट हाउस में एक बैठक के दौरान कहा कि नए टैरिफ से इसे रोका जा सकता है.
Rice Tariff का भारत पर कितना असर होगा? अब बात करते हैं कि अगर डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय चावल आयात पर टैरिफ लगाया, तो इसका कैसे और कितना असर होगा? तो बता दें कि भारत के लिए US Tariff का खतरा सीमित प्रभाव डालता है, इसके पीछे वजह ये है कि अमेरिका भारत के चावल निर्यात का केवल 3% हिस्सा है. भारत के प्रमुख बाजार खाड़ी देश हैं, जबकि अफ्रीका तेजी से बढ़ते निर्यातकों में एक बनता जा रहा है. हालांकि टैरिफ लगने से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ सकती हैं, लेकिन इससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान होने की संभावना नहीं है.

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