बाबाओं के दरबार में क्यों भाग जाते हैं भूत-प्रेत? आस्था कहें या अंधविश्वास... ये है इसका मनोविज्ञान
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बीते कुछ दिनों से बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री मीडिया में छाए हुए हैं. एक संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के आरोपों में घिरे धीरेंद्र शास्त्री के दिव्य दरबार की भी खूब चर्चा है. इन दरबारों के कई वायरल वीडियो में भक्तों के भीतर भूत-प्रेत होने के दावे किए गए हैं. इस तरह के धार्मिक दरबारों या धार्मिक मान्यता के स्थानों में भूत-प्रेत भगाने की मान्यता कैसे काम करती है, इसके पीछे का पूरा मनोवैज्ञानिक कॉन्सेप्ट समझिए.
सिर्फ बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के दिव्य दरबार में ही नहीं बल्कि देश में कई मंदिर-दरगाहें हैं जहां तथाकथित रूप से भूत या प्रेतों से सताये लोग पहुंचते हैं. इन जगहों पर पहुंचे लोगों की हरकतें वाकई सामान्य लोगों से अलग होती हैं. कई पीड़ित खुद को ही चोट पहुंचा रहे होते हैं. यहां के प्रचलित दृश्यों में महिलाओं का बाल खोलकर सिर पटकना, अजीबोगरीब आवाजें निकालना, पुरुषों का भूत-प्रेतों से बात करना ये सब दृश्य भारत के कई धार्मिक स्थानों या बाबा-ओझाओं या मौलवियों के यहां दिख जाते हैं.
भारतीय समाज का एक बड़ा तबका भूत-प्रेत, जादू-टोना जैसी बाधाओं पर यकीन करता है. इन स्थानों की मान्यता ऐसे ही नहीं बढ़ी है, बल्कि यहां इस तरह के दावे किए जाते हैं कि कई लोग यहां आकर ठीक हुए हैं. मनोविज्ञान में इसे कई अध्ययनों के जरिये बताया गया है.
हम यहां आपको नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फार्मेशन की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में साल 2020 में हुई एक ताजा स्टडी के बारे में बताते हैं. देश के जाने-माने मेडिकल प्रोफेशनल्स ने फेथ हीलिंग पर यह स्टडी की है. वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि फेथ हीलिंग का अर्थ है विश्वास की ताकत से किसी को मानसिक शारीरिक रूप से स्वस्थ करना. जैसे मनोचिकित्सा में दवाओं के साथ साथ काउंसिलिंग भी मददगार होती है, इसी तरह फेथ हीलिंग भी मानसिक रूप से परेशान लोगों के लिए चिकित्सा के साथ साथ मददगार साबित होती है.
डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि हमारे देश में जहां लोगों में मानसिक रोगों या मानसिक विकारों के प्रति जागरूकता की कमी है, इसलिए कई बार मानसिक विकार या किसी मानसिक रोग से ग्रस्त मरीज के लक्षणों को भूत प्रेत बाधा के तौर पर देखा जाता है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की मान्यताएं ज्यादा होती हैं. कई रिपोर्ट बताती हैं कि किस तरह लोगों में मास हिस्टीरिया के केस देखे जाते हैं.
बीते साल दिसंबर 2022 में एक ऐसा ही मामला चंपावत उत्तराखंड के स्कूल में आया था, जहां एक स्कूल की करीब 29 छात्राएं और करीब 4 छात्र बेहोश हो गए. समाचार एजेंसी IANS के हवाले से छपी खबर के अनुसार, 9वीं से लेकर 12वीं तक की छात्राएं अजीब तरह से चीखने-चिल्लाने लगीं, फिर एक एक करके बेहोश होने लगीं. लोग इसे दैवीय प्रकोप कह रहे थे तो वहीं शिक्षा विभाग ने जांच में पाया कि ये मास हिस्टीरिया का केस है.
इसमें लोगों में अजीब तरह की हरकतें जैसे बाल नोचना, हाथ पांव पटकना, रोना-चिल्लाना, भागने की कोशिश करना, गुस्सा जैसे तमाम लक्षण दिखते हैं. डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि ऐसे मामलों में मनोचिकित्सक को ही मरीज को दिखाना चाहिए, लेकिन लोग इन मामलों में पीर-फकीर, ओझा, तांत्रिक से लेकर दैव स्थानों पर जाते हैं. वहां इन्हें आराम भी मिलता है. इसके साथ ही लोगों को ये विश्वास भी हो जाता है कि ये सिद्ध जगहे हैं, जबकि ऐसे मामलों में मनोवैज्ञानिक द्वारा काउंसलिंग भी मददगार होती है.
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