
'पॉकेट वीटो का राइट किसी को नहीं...', सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति को बिलों पर निर्णय लेने की समय-सीमा तय की
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सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि मामले में 8 अप्रैल को ऐतिहासिक फैसला सुनाया. यह आदेश शुक्रवार को सावर्जनिक किया गया और इसे कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है. जस्टिस जेपी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने पहली बार राष्ट्रपति को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय की है.
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य होगा. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किए गए कार्य न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं.
दरअसल, तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा लंबित विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया गया था. जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. SC ने मामले में सुनवाई की और तमिलनाडु के राज्यपाल के फैसले को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया और शुक्रवार को संबंधित आदेश सार्वजनिक किया गया.
आदेश में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 201 के अनुसार, जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो राष्ट्रपति को या तो उस पर सहमति देनी होती है या असहमति जतानी होती है. हालांकि, संविधान में इस प्रक्रिया के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति के पास 'पॉकेट वीटो' का अधिकार नहीं है. यानी वो अनिश्चितकाल तक अपने निर्णय को लंबित नहीं रख सकते.
'...तो उचित कारण बताने होंगे'
बेंच ने कहा, कानून की यह स्थिति स्थापित है कि यदि किसी प्रावधान में कोई समयसीमा निर्दिष्ट नहीं है, तब भी वह शक्ति एक उचित समय के भीतर प्रयोग की जानी चाहिए. अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों का प्रयोग कानून के इस सामान्य सिद्धांत से अछूता नहीं कहा जा सकता है.

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