
पुतिन के दौरे में डिफेंस डील को लेकर क्यों नहीं हुआ कोई ऐलान? एक्सपर्ट ने बताए कारण
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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे के दौरान दोनों देशों ने कई महत्वपूर्ण आर्थिक और रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए. दोनों देशों के बीच हुए समझौते की घोषणा में कही भी किसी डिफेंस डील का जिक्र नहीं था. इसे लेकर रक्षा विशेषज्ञों ने अपना राय दी है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे में दोनों देशों के बीच कई बड़े समझौते हुए हैं. दोनों देश स्वास्थ्य, शिक्षा, वर्कफोर्स, शिपिंग, पोर्ट, प्रवासन आदि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं. प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच द्विपक्षीय वार्ता के बाद दोनों देशों के बीच हुए सात समझौतों की जानकारी दी गई. हालांकि, इनमें डिफेंस से जुड़े किसी समझौते का जिक्र नहीं था जिसके कयास पहले से ही लगाए जा रहे थे.
इसका कारण बताते हुए रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल संजय मेस्टन (रिटायर्ड) ने आजतक से कहा, 'जब हमने अमेरिका से MQ-9B खरीदा था...उसकी भी कोई घोषणा नहीं हुई थी जब राष्ट्रपति बाइडेन यहां आए थे. इनकी चर्चा शायद इसलिए नहीं होती क्योंकि डिफेंस डील्स के कई अंतरराष्ट्रीय प्रभाव होते हैं. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे लेकर भारत-रूस के बीच बात चलती रहती है. एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीद को लेकर भी कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई थी.'
उन्होंने आगे कहा, 'चीन में उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Weibo पर कल चर्चा हो रही थी कि रूस पुतिन के दौरे में भारत को पांच किलर हथियार देने जा रहा है. उनमें Su-57, R-37 मिसाइल थी, S-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम, जिरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइल और एंटी स्टेल्थ रडार का जिक्र था. इन्हें लेकर चीन को घबराहट थी. तो हो सकता है कि इस घबराहट को देखते हुए भी डिफेंस डील्स को घोषणा नहीं की गई. पहले भी हमने सुखोई 30 लिए... क्या-क्या नहीं लिए. कभी किसी को लेकर द्विपक्षीय बैठक में घोषणा नहीं हुई.'
आजतक से बातचीत में विदेश मामलों के जानकार रोबिंदर सचदेव ने कहा कि भारत-रूस के व्यापार में यूक्रेन युद्ध के बाद बहुत आगे बढ़ा है. उन्होंने कहा, 'भारत-रूस के आर्थिक रिश्तों की विडंबना ये है कि व्यापार अधिकतर डिफेंस में है और न्यूक्लियर एनर्जी में है. यूक्रेन युद्ध के बाद ही हमने रूस से तेल खरीदना शुरू किया.'
उन्होंने आगे कहा, 'यूक्रेन युद्ध से पहले भारत-रूस का द्विपक्षीय व्यापार बस 15 अरब डॉलर था. अब हम 100 अरब डॉलर का टार्गेट रख रहे हैं क्योंकि तेल खरीद ज्यादा है. कल को अगर युद्ध रुक जाए और रूस का तेल पहले वाली कीमत पर ग्लोबल मार्केट में लौट आए तो हमारा व्यापार गिरकर 20-25 अरब डॉलर आ जाएगा. तो इसलिए हमारा टार्गेट बेहद चुनौतीपूर्ण है. इसलिए हमें और डिफेंस, न्यूक्लियर और तेल के अलावा भी जो सेक्टर्स हैं, उनमें व्यापार बढ़ाने की जरूरत है. इसलिए जो भारत-रूस के समझौते हुए हैं, उनमें विविधता है.'
रोबिंदर सचदेव ने कहा कि अगर भारत-रूस के व्यापार को अगर बढ़ाना है तो व्यापार के क्षेत्रों को बढ़ाना होगा.

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